*बीमारी_और_मुकदमे_को_कभी_हल्के_से नहीं_लेना_चाहिए)-*
27 मार्च 2023- (#बीमारी_और_मुकदमे_को_कभी_हल्के_से नहीं_लेना_चाहिए)-
कथन है कि बीमारी और मुकदमे को कभी हल्के से नहीं लेना चाहिए। मेरी समझ मे मुकदमे को हल्के से लेने की गलती राहुल गांधी और उनके कानूनी सलाहकारो से हो चुकी है। उनके मनु सिंघवी जैसे सुप्रीम कोर्ट के वकील सूरत केस की तकनीकी खामिया पत्रकारो को समझा रहे है, लेकिन जब यह बातें अदालत को बताने का समय था तो वह सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील होने का अहंकार पाले सूरत की कोर्ट मे जाने से परहेज कर रहे थे। राहुल को भी शायद अपनी शख्सियत को लेकर भ्रम था और उनको लगता था कि छोटी अदालत की कानूनी कार्रवाई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। उनके इस अहंकार ने कि वह सावरकर नही गांधी है और वह अपने अमर्यादित भाषण पर खेद व्यक्त नही करेगें अदालत को यह फैसला सुनाने के लिए मजबूर करता दिखाई पड़ता है। अब जज के अधिकार क्षेत्र पर प्रश्न उठाए जा रहे है। मुझे याद आता है कि अस्सी के दशक मे राजनारायण जो समाजवादी पार्टी के नेता थे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आपत्ति जनक टिप्णियाँ कर दी थी। वह ब्यान उन्होने दिल्ली मे दिया था, लेकिन मैने उस समय के सोलन के सुप्रसिद्ध होमोपैथ डा विजय मोहन सिंघा के साथ मिल कर राजनारायण के खिलाफ अपराधिक मानहानि का मुकादमा सोलन की अदालत मे दायर कर दिया था। नेता जी की ओर से दिल्ली के वकीलों ने अधिकार क्षेत्र का मामला सोलन की कोर्ट मे उठाया था। हमारी ओर से सोलन के उस समय के वरिष्ठ वकील राजेन्द्र मोहन सहगल पैरवी कर रहे थे। उनकी दलील थी कि भले ब्यान दिल्ली मे दिया गया है लेकिन वह ब्यान सोलन मे बिकने वाले अखबारों मे छपा है और हम संघ के स्वयंसेवक है इसलिये हमारी मानहनि हुई है। हालांकि उस केस का नेता जी के निधन होने के कारण अन्तिम निर्णय नहीं आ सका, लेकिन नेता जी के वकीलो की अधिकार क्षेत्र की आपत्तियां अदालत ने जरूर खारिज कर दी थी।
जैसा कि मैने पिछले अपने ब्लॉग मे लिखा था मै स्वयं भी सिविल और आपराधिक मानहानि के मुकदमो का सामना कर चुका हूँ। यह मामला एक भाजपा वरिष्ठ नेता के ऊपर मेरे इस आरोप को लेकर बना था कि नेता ने गरीब और गरीबु की जमीने औने-पौने दामो मे खरीद ली है। मेरा इस केस को लेकर बहुत तल्ख अनुभव है। पहले तो सत्तारूढ दल के नेता के खिलाफ कोई वकील केस लड़ने को तैयार नही हो रहा था। फिर यहां के वरिष्ठ वकील और सी पी आई के वरिष्ठ नेता शशि पंडित ने मेरा केस बिना फीस के लड़ कर शुरू मे ही ऊपर की अदालत मे शिकायत को चुनौती देकर राहत दिलाई। हालाकि मैने यह आरोप हिमाचल लोकहित पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता के तौर पर लगाए थे, लेकिन खेद का विषय है कि पार्टी ने सारे मामले मे मेरा कोई सहयोग नही किया। पार्टी मे जो व्यक्तिगत दोस्त थे वह जरूर साथ रहे। यह बात इसलिए बता रहा हूँ कि कई बार कार्यकर्ता या नेता अति उत्साह मे ब्यान देता है या लड़ाई लड़ता है, लेकिन वह उसकी व्यक्तिगत लड़ाई बन कर रह जाती है। राहुल बड़े नेता है उनके केस की तुलना मै अपने केस के साथ नही कर सकता हूँ। फिर भी उनकी पार्टी के बड़े वकीलो का सूरत कोर्ट मे न जाना और वीरवार को सजा के स्टे की अर्जी न लगाना जब कि उन्ही वकीलो ने पवन खैरा को दो घण्टे मे सुप्रिम कोर्ट से राहत दिलाई थी इससे कहीं न कहीं राहुल की कहानी भी मेरी कहानी की हमशक्ल दिखाई देती है।
#आज_इतना_ही कल फिर नही कड़ी के साथ मिलते है।
#तस्वीर- राहुल को सजा सुनाने वाले जज एच एच वर्मा की है। ( संभार गुगल)