पाठकों के लेख एवं विचार

*पाठकों के लिए एवं विचार लेखक विनोद शर्मा*

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मिट्टी में मिला दूँगा
       
     
मिट्टी में मिला दूँगा, मैं नाम मिटा दूँगा।
जितने आतंकी है ,उनको मैं सुला दूँगा।
है नाम मेरा योगी, कहते मुझे बाबा है।
अपनी पे आऊं तो, आतंक मिटा दूँगा।

नही भेदभाव मुझमें, सबको मैं चाहता हूँ।
यू पी की धरती पे, बस अमन मैं चाहता हूँ।
जो अमन बिगाड़ेगा, फिर शेर दहाड़ेंगा।
सम्मान के आगे मैं, पर्वत को झुका दूँगा।

परिवार है सब मेरे, सब का रखवाला हूँ।
आतंकी तेरे लिये,  मैं हाथी मतवाला हूँ।
अब छोड़ चले जाओ, मेरी यू पी को तुम।
वरना चुन चुन कर, हर घर से निकलूँगा।

ये राम की भूमि है, यहाँ कृष्ण भी जन्मे है।
यहाँ लोग सुबह मिलके, राम राम कहते है।
इस पावन धरती पे, रावण नही चाहता हूँ।
सर फिर से उठाया तो, सर धड़ से उड़ा दूँगा।

भारत है मुझे प्यारा ,यू पी आंख है तारा।
यहाँ कावड़ ईद दीवाली पे, दिखता भाई चारा।
जो प्यार से रहते है, वो सारे सुख पाते है।
जो गरीब सताया तो, मैं जड़ से मिटा दूँगा।

विनोद वत्स

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