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*फतेह बुर्ज SAS नगर मोहाली की एक शानदार ऐतहासिक स्मारक*

 

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फतेह बुर्ज SAS नगर मोहाली की एक शानदार ऐतहासिक स्मारक।

 फतेह बुर्ज  SAS नगर मोहाली एक शानदार कलाकृति है तथा इसे बहुत ही सुंदर ढंग से बनाया और सिहेजा गया है
पंजाब सरकार को इसे और अच्छा और सुंदर करने की कोशिश करनी चाहिए ।

मोहाली स्थित  फतेह बुर्ज बहुत ही सुंदर और ऐतिहासिक स्थान है। यह यहां पर बहुत खुली हवा और बहुत बड़े स्थान पर बनाया गया है।
यहां पर जाने के पश्चात ऐसा लगता है कि हम किसी टूरिस्ट प्लेस पर आ गए हैं हालांकि इसे काफी अच्छी तरह से मेंटेन किया गया है इसके रखरखाव में कोई कमी नहीं है फिर भी हर अच्छी चीज में भी सुधार की हमेशा गुंजाइश बनी रहती है ।पंजाब सरकार को चाहिए कि इस बुर्ज के रखरखाव तथा इसे और अधिक सुंदर बनाने के लिए प्रयास करें, ताकि अधिक से अधिक लोग यहां पर आए ।

यह एक अच्छा पब्लिक इंटरेस्ट का स्थान बन सकता है जहां लोग सिख इतिहास के बारे में यहां पर जानने आते हैं ,वहीं पर एक शांतमय में वातावरण में अपना समय बहुत ही सकून भरे पलों में बिता सकते हैं ।यह बुर्ज पर काफी खुले स्थान में बना है ,एक छोटा सा कैफिटेरिया भी बनाया गया है उसमें काफी सुधार की गुंजाइश है। यहां पर जो झील बनाई गई है उसमें अगर बोटिंग की सुविधा हो जाए तो यह बहुत बड़ा आकर्षक का कारण बन सकता है ।
अगर सरकार इसे और अधिक दर्शनीय और सुंदर स्मारक बनाना चाहती है तो इसके लिए अधिक बजट की आवश्यकता है जिसकी तरफ सरकार को ध्यान देना चाहिए और इसे और अधिक सुंदर बनाने की कोशिश चाहिए। सिख इतिहास के बारे में कुछ और चीजें यहां पर जोड़ी जा सकती है।

फतेह बुर्ज का संक्षिप्त इतिहास इस तरह से ट्रांसलेट किया गया है यदि कोई गलती हो तो क्षमा प्रार्थी

फतेह बुर्ज छप्परचिरी की ऐतिहासिक लड़ाई की तीसरी शताब्दी के अवसर पर, आठ स्तंभों वाले फ़तेह बुर्ज का निर्माण जनवरी 2011 में शुरू किया गया था और इसे 11 महीने के रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया था। भारत का सबसे ऊंचा, यह 328 फीट ऊंचा बुर्ज महान जनरल बाबा बंदा सिंह बहादुर द्वारा लड़ी गई लड़ाई में सरहिंद को जीतने के लिए खालसा की ऐतिहासिक जीत के प्रतीक के रूप में खड़ा है। इस ऐतिहासिक लड़ाई में खालसाओं ने दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहादत का बदला लेकर सरहिंद के सूबेदार वजीर खान को सबक सिखाते हुए प्रथम खालसा शासन की स्थापना की। यह बुर्ज तीन मंजिला है, पहली 67 फीट, दूसरी 117^~^ तीसरी 220 फीट ऊंची है। इसके शीर्ष को एक गुंबद और एक खंडा से सजाया गया है। पहली मंजिल समाना की जीत, दूसरी मंजिल सढौरा की जीत और तीसरी मंजिल सरहिंद की जीत की याद दिलाती है जो छप्परचिरी में लड़ी गई थी। इस स्मारक परिसर में बाबा बंदा सिंह बहादुर जी और उनके पांच सेनापतियों की मूर्तियाँ हैं, टीले वजीर खान की मुगल सेना से लड़ते हुए खालसा सेना की कमान संभाल रहे थे, जो उस समय के युद्ध के दृश्य का प्रतीक है। इन टावरों से साहिबजादा अजीत सिंह नगर कॉम्प्लेक्स का नजारा देखने लायक होता है।

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