*#चंबा_के_चौगान_में #हेमांशु_मिश्रा*
#चंबा_के_चौगान_में
#हेमांशु_मिश्रा
चंबा के चौगान में
ढूंढ रहा हूँ
पीपल के बूटे की निशानी
वो कुंजू चन्चलो की
अमर प्रेम कहानी
कभी गानों में
कभी कहानी में
अलग अलग
परिपेक्ष में
सुनी थी यह
कई लोगों की जुबानी
चंबा के चौगान में
ढूंढ रहा हूँ
पीपल की निशानी
फिर वही कहानी
हरी घास में
सुबह की सैर करते
लोग दिख रहे हैं
एक कोने में
हॉकी खेलते नौजवान
दिख रहे है
योग ध्यान
में लीन
साधकों की उपस्थिति भी है
पर
आंखे अभी भी
ढूंढ रही है
वो पीपल के बूटे की निशानी
तभी
दूर एक कोने में
पीपल की टहनी की बातों ने
झकझोर दिया
सूखे पत्ते
वीरान चौपाल
चिड़ियों की चहचाहट
खुद ब खुद एक साथ
कहने लगी
मोबाइल के दौर में
सात्विक प्रेम को
खोजते हो
आज के दौर में
कुंजू चन्चलो को
ढूंढते हो
चांदी के बटन का नही
अब लोकेशन
भेजने का ज़माना है
डर गया
घबरा गया
कहीं चंबा के मिज़ाज तो नही बदले
कुंजू चन्चलो के ख्वाब तो नही बदले
फिर साएं साएं करती
रावी की लहरों में
कुंजू चन्चलो की स्वर लहरियों को
महसूस किया
ओर ढूंढ ही लिया
अमर प्रेम को
समेटे
रचते
बसते
चंबा को
चौगान को
ढूंढ ही लिया
कई कहानियों के
साक्षी
उस पीपल के बूटे को