*नगर_निगम_शिमला_मे_कांग्रेस_की_एक_तरफा_जीत*
06 मई 2023- (#नगर_निगम_शिमला_मे_कांग्रेस_की_एक_तरफा_जीत)-
भारत चुनावों का देश है। यहां हर समय कहीं न कहीं कोई न कोई चुनाव होता रहता है। अभी नेता और कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव की थकान उतार भी नहीं पाए थे तो शिमला नगर निगम के चुनाव आ गए। खैर लोकतंत्र मे चुनाव को एक पर्व के रूप मे देखा जाता है। वैसे पहले नगर निगम शिमला के छोटे पर्व के बाद विधान सभा चुनाव का बड़ा पर्व आता था लेकिन इस बार क्रम बदल गया। इस बार विधान सभा के बाद नगर निगम के चुनाव हुए और कांग्रेस ने विधान सभा की तर्ज पर नगर निगम मे भी बड़ी जीत हासिल की है। कुल 34 वार्डों पर हुए चुनाव मे कांग्रेस एक तरफा बढ़त हासिल करते हुए 24 वार्डों पर कब्जा करने मे सफल रही। भाजपा को 9 एवं माकपा को एक सीट मिल सकी है। उल्लेखनीय है कि आम आदमी पार्टी की सभी वार्डों मे जमानत जब्त हो गई है। मेरी समझ मे कांग्रेस की जीत का मुख्य कारण है कि कांग्रेस और मतदाताओं का अभी हनीमून पीरियड चल रहा है। हालांकि भाजपा के कुछ अति उत्साहित नेता मतदाताओं की सरकार से बढ़ रही नाराजगी का प्रचार कर रहे थे लेकिन परिणाम बता रहे है कि मतदाता अभी सुख की सरकार को और वक्त देना चाहते है।
मेरे विचार मे भी किसी सरकार की कारगुजारी के आंकलन के लिए तीन- चार माह का समय बहुत कम है, इसलिए शिमला नगर मे कांग्रेस की जीत को अपेक्षित जीत माना जा सकता है, लेकिन भाजपा की हार बड़ी है भाजपा नेताओं को एक बार फिर आत्म अवलोकन करना होगा। मेरी जानकारी के अनुसार विधानसभा की हार के बाद आत्म चिंतन और आत्म निरीक्षण की घोषणा के बाद भी हार पर और हार के कारणों पर गभींरता से विचार नहीं किया गया। भाजपा मे मेरे पुराने दोस्त जो अभी भी मुख्यधारा मे सक्रिय है ने निजि बातचीत मे मुझे बताया कि भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक मे हार की समीक्षा होना तय था लेकिन वहां पर मौजूद एक राष्ट्रीय पदाधिकारी ने समीक्षा को यह कहते हुए बंद करवा दिया कि ” विधवा विलाप की जरूरत नहीं है”।आत्म चिंतन और आत्म निरीक्षण यदि विधवा विलाप है तो किसी भी पार्टी को अपनी गलतियों की पहचान कैसे होगी। खैर शिमला नगर निगम चुनाव मे भाजपा और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।विशेष कर भाजपा के सारे प्रदेश भर के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शिमला मे डेरा डाल दिया था। केंद्र की ओर से उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और हिमाचल के पूर्व प्रभारी को विशेष रूप से नगर निगम चुनाव की देखरेख के लिए शिमला भेजा गया था।
चुनाव के दौरान मैने कई भाजपा नेताओं से बात की और पाया की उन्हे मतदाताओं से अधिक अपने संसाधनो पर भरोसा है। यह बात सही है कि दोनो पार्टियों ने खूब खर्च किया, लेकिन कांग्रेस से अधिक भाजपा के खर्च की चर्चा है। सर्वविदित है कि दोनो तरफ से पैसे और शराब की चुनाव मे बड़ी भूमिका रही है। मेरे अनुभव के अनुसार संसाधन, शराब और क्षेत्र के बाहर से आए कार्यकर्ता एक सीमा तक ही चुनाव मे मददगार हो सकते है, लेकिन यह भ्रम पाल लेना कि हम सारा चुनाव ही संसाधनो और बाहर से आए नेताओं या कार्यकर्ताओं के दम पर जीत लेंगे घातक ही होता है। इस चुनाओं के देश मे एक बार फिर लोकसभा चुनाव सामने खड़ा है। उम्मीद है शिमला नगर निगम के परिणामों के बाद भाजपा आत्म चिंतन और आत्म निरीक्षण जरूर करेगी।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।
सूद साहब ! ये बात बिलकुल माननी पड़ेगी कि भारत चुनावों का देश है या यूं कह लो इसको नेताओं द्वारा इसको चुनावी रण भूमि बना दिया है जहां कहीं न कहीं इस रण की भेरी गूंजती ही रहती है , मैं बीच में एक बात जोड़ रहा हूं पहले जहां तक मुझे याद है विधान सभाओं और लोकसभा के चुनाव एक ही तिथि को होते थे और ये सिलसिला तब टूटा जब प्रदेश और केंद्र सरकारें कुछ स्वार्थी या महात्वकांक्षी नेताओं की सोच के कारण अविश्वास प्रस्ताव का शिकार हो कर गिरती रहीं और ये एक ऐसी परंपरा चली कि नेता लोगों की कुर्सी की चाहत के साथ साथ देश आर्थिक तौर पर दिवालिया होता गया जिसका खामियाजा आज प्रत्येक भारतवासी किसी न किसी रूप में भूक्त रहा है , और अगर चुनाव को आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो कम से कम उपचुनाव तो रोके जा सकते हैं, अगर कहीं दुर्भाग्यवश कोई भी सीट पंचायत से लेकर लोकसभा तक किसी भी कारण रिक्त होती है तो हारने चाहे किसी भी पार्टी का हो चाहे आजाद ही क्यों न हो , हां बात चली है नगर निगम चुनाव शिमला का और जो विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद ही आ गए और विपक्ष के इस प्रचार के बाबजूद कि सुक्खू सरकार अपनी 10 गा रंटिया पूरी करने में बिल्कुल असफल रही है , प्रबुद्ध जनता ने इस आरोप को सिरे से नकार कर कांग्रेस को दिल खोल कर समर्थन दिया क्योंकि जनता इस बात को भली भांति जानती है कि चुनाव घोषणा पत्र में दी गई किसी भी प्रकार की कोई भी गारंटी कुर्सी संभालते ही पूरी नहीं की जा सकती मगर जो बहुत बड़ी और एक जटिल गारंटी थी ओ पी एस उसको सरकार ने पूरा कर दिखाया , वैसे भी सुक्खू जी की शालीनता और दृढ़ निश्चय से सब भली भांति परिचित हैं तो फिर लोग निगम चुनावों में सुक्खू जी या सुक्खू सरकार का साथ क्यों नहीं देते ? ठाकुर जय राम जी को तो मुख्यमंत्री की कुर्सी कोई पिछले सत्कर्मों की वजह से मिली क्योंकि धूमल जी , गुलाब जी और ठाकुर रविंद्र सिंह रवि जी चुनाव हार गए और जय राम जी जमीन से न जुड़ कर हवा में ही रहे और शायद जनता द्वारा जय राम सरकार को हवा हवाई करने का एक मुख्य कारण साबत हुआ , चुनाव में, खास कर विधान सभा चुनाव या पंचायत या निगम चुनावों में बाहर के नेता का कभी भी कोई प्रभाव पड़ता दिखता नहीं आया क्योंकि इस में स्थानीय लोगों के साथ साथ स्थानीय मुद्दों को महत्व दिया जाता है , लोगों ने इन बातों को भली भांति समझ कर ही मतदान किया और प्रदेश के साथ साथ राजधानी के निगम का जिम्मा भी सुक्खू सरकार को सौंप दिया अब खरा उतरने की जिम्मेवारी सरकार की है , विपक्ष के झूठे प्रचार का असर आने वाले दिनों में सरकार की कार्यप्रणाली पर न पड़े और खासकर आने वाले लोकसभा चुनाव में भी सरकार का दमखम कायम रहे क्यों ? क्योंकि विपक्ष का एक ही झूठा लारा ” मिशन लोटस ” जो किसी के भी गले नहीं उतरा , और अब भी अध्यक्ष डाक्टर विंदल द्वारा एक ही बात की हमारी हार का प्रतिशत बहुत कम रहा इसके बदले आप ये क्यों नहीं मानते कि हार तो हार है और इस बात को भी आप मत भूलो डाक्टर साहब कि विधानसभा चुनाव में आपकी पार्टी के मंत्री ही जनता ने हवा हवाई कर दिए फिर भी अपने कामों और मिलनसारी की वजह से विपान परमार जी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे , इसी बात के साथ कांग्रेस के मंत्रियों , विधायकों और पार्षदों को भी मेरी एक सलाह रहेगी आपको जनता ने भेजा है और आपकी कुर्सी जनता की तरफ से आपको एक तोहफा है जनता से हमेशा अपना संवाद बनाएं रखें उसकी समस्याओं के समाधान की ओर ध्यान रखें आप रिवाज बदल कर एक इतिहास बनाए नहीं तो ये पब्लिक है ये सब जानती है
Dr lekh raj