*समलैंगिक_विवाह_मामले_की_सुनवाई_जारी*
12 मई 2023- (#समलैंगिक_विवाह_मामले_की_सुनवाई_जारी)-
बार कौंसिल के बाद अब तीन प्रदेशों असम,आंध्र प्रदेश और राजस्थान ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है। स्मरण रहे इससे पूर्व बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर कोर्ट से समलैंगिक विवाह को लेकर कानून बनाने के मामले को संसद पर छोड़ने का आग्रह किया था। अब सुप्रीम कोर्ट मे हो रही सुनवाई के दौरान सात राज्यो ने कोर्ट मे रिस्पांस दायर किया है। उपरोक्त तीन राज्यो ने इसका यह कहते हुए कडा विरोध दर्ज करवाया है कि जनमत पूरी तरह समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के खिलाफ है। राज्यो ने यह भी कहा कि इससे समाजिक ताना- बाना नष्ट हो सकता है। चार राज्यो महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और सिक्किम ने कोर्ट से अपना विस्तृत रिस्पांस देने के लिए और समय की मांग की है। खैर सर्वोच्च न्यायालय लगातार नौवे दिन इस मामले पर सुनवाई कर रहा था। यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार पहले ही कोर्ट के इस मामले मे कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति दर्ज कर चुकी है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि भारतीय कानून वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना अकेले व्यक्ति को बच्चा गोद लेने की अनुमति देता है। उधर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने दलील दी कि विभिन्न कानूनो मे बच्चे का कल्याण सर्वोपरि रखा गया है।
आयोग ने कोर्ट का ध्यान कोर्ट के उन फैसलो की ओर आकर्षित किया जिसमे कहा गया है कि बच्चे को गोद लेना मौलिक अधिकार नही है। हालांकि समलैंगिकता को पहले ही अपराध की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है, लेकिन अब विरासत, गोद लेने के अधिकार और संम्पति स्थानातंरण जैसे तकनीकी मुद्दो को लेकर याचिका दायर कर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की कोर्ट से गुहार लगाई जा रही है। मेरी समझ मे 99.09 % लोग इसके खिलाफ है। कानून बनाना संसद का अधिकार क्षेत्र है और कोर्ट का काम कानून को परिभाषित करना है। मेरे विचार मे कोर्ट को इस विषय पर कानून बनाने का काम संसद के विवेक पर छोड़ देना चाहिए और सर्वोच्च न्यायालय के समय को बचाना चाहिए। इस विषय पर मेरे पहले लिखे ब्लॉग मे भी इस ब्लॉग की कुछ बातो का उल्लेख था। उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।