*प्रशासन बरसात और हम :उमेश बाली*
प्रशासन बरसात और हम
भयंकर बरसात जारी है जान माल का नुकसान जारी है । एक तो कुदरत का कहर है । दूसरी तरफ बहुत सी जगह पर कहर को हमने खुद बुलावा भेजा है । हैरानी इस बात की है कि सड़क के किनारे निर्माण के लिए नियम है इसी तरह नदियों के किनारे के भी नियम हैं । इसके इलावा हमारी बुद्धि भी चीजों को समझती है । लेकिन लायरवाह नजरिया और लालच भारी हो जाता है । बडी और खतरनाक नदियों के किनारे पर निर्माण होते देख प्रशासन क्यों समय रहते कार्यवाही नही करता । अनाधिकृत और सरकारी भूमि पर भी निर्माण को नही रोका जाता । आगर प्रशासन के पास आधिकार हैं तो उन्हें उसी समय निर्माण रोक देना चाहीए । सारा मसला भ्रष्टचार ओर चाचा भतीजा पर आ कर रुक जाता है । जनसंख्या की बेतरतीब वृद्धि और बेरोजगारी इसके अन्य कारण है । जिसे जगह मिलती या दिखाई देती है तो वहां बेतरतीब निर्माण शुरू हो जाता है । अगर शिमला जैसी जगह में जहां सरकार बैठती है वहां बेतरतीब निर्माण जारी है तो पूरे प्रदेश का क्या हाल होगा अंदाज लगाना कोई मुश्किल नहीं है । दूसरी तरफ मजदूर तबका जो प्रवासी हैं अक्सर अपनी झुग्गियां नदी किनारे बनाते हैं जिसमें सदा ही बरसात में खतरा बना रहता है। मंडी कुल्लू मणि कर्ण में तो होटल और धार्मिक स्थलों के निर्माण बिलकुल खतरनाक जगह पर निर्माण होते रहते है । यह एक समानांतर निर्माण प्रक्रिया है जो पूरे देश में निरंतर जारी रहती है । दूसरी तरफ न तो निमार्ण तकनीकी दृष्टि से सही होता है न प्राकृतिक दृष्टि से । अवैध खनन आग में घी का काम करता है । पानी की रास्ते में जो प्राकृतिक रूकावटे होती हैं वो सारी की सारी समाप्त हो चुकी हैं नतीजा जो लोग नदियों से 50 मीटर दूर भी हैं वो भी चपेट में आ जाते हैं । अवैध खनन ने बहुत सी जगह पर नदी के किनारों को तबाह कर दिया है और बदस्तूर जारी है । अवैध खनन एक बहुत बडा कारोबार है लेकिन इसने हमारे जीवन पर नकारत्मक प्रभाव डालने शुरू कर दिए हैं । गांव और शहर मे जो निरंतरता जारी है , आबादी की वृद्धि ने इसे और तीव्र गति दी है । निरंतर विकास और निर्माण ने शहरों और गांवों में इसी निरंतरता ने अंतर समाप्त कर दिए हैं । आप कहीं भी जाइए आपको गांवों और शहरों में अंतर मिटता दिखाई देगा । पालमपुर को ही लीजिए धर्म शाला को लीजिए , रास्ते के तमाम गांव पूरी तरह से जुड़ चुके हैं और यहीं निरंतरता आपको नदियों और नालों के किनारे पर दिखाई देंगी । नदियों और आबादी के निर्माण ने दोनो के बीच कोई दूरी नही छोड़ी । सबसे हैरान करने वाली बात है कि यह सब कुछ सरकार और प्रशासन के सामने होता है । जनता तो एक साल में सुधर जाती है अगर प्रशासन प्रभावी हो लेकिन प्रभावी प्रशासन को चाचा भतीजे के रिश्ते खा जाते है । लेकिन कुदरत निष्पक्षता से कार्यवाही करती है वो किसी को नही छोड़ती । ये बात अनाधिकृत निर्माण करने वालों को समझ लेनी चाहीए कि आपदा हर दस बीस साल में आएगी ही । नदियां है अपना रुख बदलेंगी ही दूसरी तरफ सरकार को विकास के लिए कुदरत के साथ मित्रता के रास्ते तलाश करने ही होंगे । इनसान कुदरत के साथ लड़ कर नही जीत सकता उसके साथ मिलकर रहना सीखना होगा। वरना हर साल हम ऐसे मंजर देखेंगे । नदियां पूजा करने से खुश नहीं होती , अपितु अवैध खनन और नदियों में कूड़ा इक्कठा न करने से खुश होती हैं । नदियों किनारे निर्माण नदियों में कूड़ा इक्कठा करना ही है इसे हर साल बहना ही होगा । अंत मे नदियों का ख्याल रखिए , सुरक्षित रहिए और खुश रहीए । धन्यवाद । उबाली।