*हरि हरि बोल 🙏🙏 आइए आज पढ़ते हैं नरक चतुर्दशी पर*



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आइए आज पढ़ते हैं नरक चतुर्दशी पर 👇👇👇👇
कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इस पर्व को रूप चौदस, नरक चतुर्दशी, छोटी दिवाली, नरक निवारण चतुर्दशी अथवा काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस साल नरक चतुर्दशी का पर्व 11 और 12 नवंबर को है। यह पर्व दीपावली से एक दिन पहले और धनतेरस के एक दिन बाद मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है। हिंदू धर्म में यह काफी महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। नरक चतुर्दशी के पर्व को मनाए जाने के पीछे एक बड़ी ही रोचक कथा जुड़ी हुई है। ऐसे में चलिए जानते हैं नरक चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है…
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में नरकासुर नाम के राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और ऋषि-मुनियों के साथ 16 हजार एक सौ सुंदर राजकुमारियों को भी बंधक बना लिया था। इसके बाद नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार एक सौ कन्याओं को आजाद कराया।
कैद से आजाद करने के बाद समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया। नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में देवगण व पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए। माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई।
कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था, तो वध करने के बाद उन्होंने तेल और उबटन से स्नान किया था। तभी से इस दिन तेल लगाकर स्नान की ये प्रथा शुरू हुई। माना जाता है कि ऐसा करने से नरक से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग व सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
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वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार नरकासुर के कब्जे में रहने के कारण सोलह हजार एक सौ कन्याओं के उदार रूप को फिर से कांति श्रीकृष्ण ने प्रदान की थी, इसलिए इस दिन महिलाएं उबटन से स्नान कर सोलह शृंगार करती हैं। माना जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन जो महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं, उन्हें सौभाग्यवती और सौंदर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
लेखिका रीतू सूद

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