पाठकों के लेख एवं विचार
*बोझ मन का करू कैसे हल्का* विनोद शर्मा वत्स *
बंध चार लाइनों में
बोझ मन का करू कैसे हल्का
आज मेरा दर्द है छलका।
साँसे भारी दिल मुश्किल में।
हिलने लगा सांसों का मनका।
तेरी नज़र कब होगी दाता।
मैने देखा गुरुओ में विधाता।
तेरी शरण मे आ गया दाता।
तू मिट्टी को सोना बनाता।
तुझको बसाया मन मंदिर में
दर्द भुलाया इस मंदिर में।
प्रेम के सारे पुष्प चढ़ा के।
मन हर्षाया इस मंदिर में।
पंछी पिंजरा तोड़ना चाहे।
मन का कबूतर है फड़फड़ाये।
आस है अब ऊँचे मकान की
जहाँ से कोई वापिस न आये।
खुशियों के जंगल मे दाता।
कुछ दिन तो ठहरा दे।
मन के इस पागल जंतु को।
रिश्तों के रूप दिखा दे ।
मन पहेलिया पूछे तुझसे।
रूप बड़ा के ज्ञान।
रूप कहे इतरा के मन से
रूप ही है भगवान।
विनोद शर्मा वत्स
Great