*चुनाव आयोग ने चुनावों में राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्रलोभन भरे वादे करने के आधार पर राजनीतिक पार्टियों के पर रोक लगाने पर जाहिर की असमर्थता*
चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों के चुनावी वादों में प्रलोभन देने तथा वोटरों को लुभाने वाले वायदे किए जाने पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि कि चुनाव से पहले या बाद में किसी भी मुफ्त उपहार की पेशकश संबंधित पार्टी का नीतिगत फैसला है। ऐसी नीतियां आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं या प्रतिकूल असर डालती हैं, यह उस राज्य के मतदाताओं द्वारा तय किया जाना है। अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा कि भारत का चुनाव आयोग राज्य की नीतियों और निर्णयों को नियंत्रित नहीं कर सकता है, जो जीतने वाली पार्टी द्वारा सरकार बनाने के बाद लिए जाते हैं। आयोग ने कहा कि कानून में प्रावधानों को सक्षम किए बिना इस तरह की कार्रवाई करना सम्भव नही होगा।
फिर हाल क्या है चुनाव आयोग के पास अधिकार
कानून में प्रावधानों को सक्षम किए बिना पार्टियों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकती है। आयोग के पास तीन आधारों को छोड़कर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है
उल्लेखनीय है कि अश्विनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनावी वादों में लोगों को प्रलोभन देना उनके वोट के अधिकार को प्रभावित करने जैसा है आयोग ने कहा कि जहां तक याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की प्रार्थना है कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जा सकता है कि वह उस राजनीतिक दल का चुनाव चिन्ह/पंजीकरण रद्द करे जो सार्वजनिक निधि से मुफ्त उपहार का वादा करता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के अपने फैसले में निर्देश दिया था कि चुनाव आयोग के पास तीन आधारों को छोड़कर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है।
उन्होंने कहा है कि उनके पास केवल मात्र तीन ऐसे अधिकार है जिसके आधार पर वह राजनीतिक पार्टियों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं और वे अधिकार हैं वह कारण हैं,तीन आधारों में शामिल हैं- किसी राजनीतिक दल द्वारा धोखाधड़ी या जालसाजी करके पंजीकरण हासिल करना, किसी पंजीकृत राजनीतिक दल एसोसिएशन, नियमों और विनियमों के अपने नामकरण में संशोधन करना और चुनाव आयोग को सूचित करना कि उसका संविधान के प्रति विश्वास और निष्ठा समाप्त हो गई है। तीसरे मामले में ऐसा कोई भी आधार शामिल है जहां आयोग की ओर से किसी तरह की जांच की जरूरत नहीं होती है। चुनाव आयोग के पास इन तीन आधारों को छोड़कर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने की कोई शक्ति नहीं है।