सतगुण,निर्गुण या अवगुण सब रूप यहीं सतनाम है सब नाम तुम्हारे रूप, कुरूप सब स्वरूप सही !!
अखंड हो या खंड-खंड कई सूक्ष्म, वृहद आकार -साकार सब मे व्यापक तुम हो निराकारमयी !!!
नभ या जल मे वन या मरू मे विचरे कई कीट पतंग बिखरे जितने भी लाल पीले तुम्हारे ही है सब रंग !!!
अक्षर हो या वैखरी वाणी उतने उच्चारण जितने प्राणी या फिर रचे जिसने ध्वनि के राग कई खटे मीठे कड़वे तीखे सब बोल सही कोयल के सुर मीठे किए कर्कश काक के यधपि दोनो गाए शब्द वही !!!
सोम भौम, आदित्य अनेक शनि- गुरु चले अपनी अपनी धूरी राहु- केतू की अपनी छाया मिट्टी के माधो सब सबको उसने बुद्धिपरक बनाया !!!
फिर भी उलझने इतनी, जैसे भूल भलैया नाविक तट पर नाव पहुंचाए जब हो जीवन शरण मे तेरी न कोई झंझट और झमेला सोच क्यों — अवधूत हो या कबीर ज्ञानी संत फकीर सब कहे— जग दर्शन का मेला !!!!