*वन निगम व वन विभाग के अधिकारियों के बंधे हुए हाथ*
Editorial
*वन निगम व वन विभाग के अधिकारियों के बंधे हुए हाथ*
हमारे देश में कुछ ऐसे नियम होते हैं जो जनता के हित में नहीं होते वह केवल कुछ लोगों के हित में होते हैं कुछ नियम ऐसे होते हैं जो सरकार के हित में नहीं होते परंतु उन नियमों को भी सरकार की हानि करवा कर मानना पड़ता है जिसका ताजा उदाहरण है सूखे हुए पेड़ों को काटने के लिए उन्हें बेचने के लिए वन निगम और वन विभाग को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है और यह मशक्कत इतनी होती है कि अधिकारी सोचते हैं कि पेड़ गिरा है गिरा रहे, सड़ जाए ,परंतु फालतू की सिर दर्दी कौन ले।
वन निगम और वन विभाग के पास ऐसे शायद करोड़ों के नहीं अरबों के सूखे पेड़ जंगलों में खड़े हैं या गिर कर सड़ रहे हैं ,जिन्हें काटने की और बेचने की इजाजत शायद उनके पास नहीं है।
इन चित्रों में आप देख सकते हैं कि यह डलहौजी के कालाटॉप जहां फॉरेस्ट ही फारेस्ट है और देवदार जैसी बेशकीमती लकड़ी की कोई कमी नहीं है परंतु यह सूखे हुए पेड़ ना तो विभाग बेच पा रहा है और ना ही इन्हें कटवा पा रहा है। हालांकि कई जगह पर यह मानव जीवन के लिए खतरा भी बने हुए हैं ।इसी तरह से कुछ हरे पेड़ भी होते हैं जो सड़कों के किनारे अपनी जड़े छोड़कर एकदम सड़क की ओर झुके हुए होते हैं और कभी भी किसी भी वाहन पर गिर कर लोगों की जान ले सकते हैं परंतु सरकार है कि मानती नहीं और अगर कोई ऐसा संवेदनशील अधिकारी इस विषय में कोई कार्यवाही करना भी चाहे तो उसे नियमों में इतना उलझा कर रख दिया जाता है कि वह जिम्मेवारी को तैयार नहीं होते उन्हें ऐसा लगता है कि जनता के हित में कार्य करने से कहीं वह खुद मुसीबत में ना पड़ जाए । गले सड़े गिरने वाले पेड़ों को काटने की इजाजत दे कर जनता की जान बचाते बचाते कहीं खुद की जान आफत में ना फंसा लें।अगर कोई अधिकारी रिस्क ले भी ले तो भी पर्यावरणविद या दूसरे विभाग एनजीटी वाले आदि उसके विरुद्ध झंडे लेकर खड़े हो जाएंगे कि आपने पर्यावरण का नुकसान कर दिया। और लोगों के लिए पर्यावरण बचाना जरूरी है मानव जीवन बचाना उनकी प्राथमिकता नही। यदि कोई मानव जीवन के लिए खतरा बने एक पेड़ को काटता है तो उसकी जगह 4 पेड़ और लगाये जा सकते हैं और मानव जीवन बचा सकते हैं तथा सरकार को आमदनी करवा सकते हैं।
परंतु ऐसा सोचे कौन ऐसा करें कौन कुछ लोग कुछ मुद्दों को केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए ही इस्तेमाल करते हैं यह हमारे भारत देश की विडंबना है
लेकिन वन निगम अधिकारियों के बंधे हुए हाथ! अगर जनहित में करेंगे कार्य तो कोई नहीं देगा उनका साथ!!
अगर काटा वृक्ष तो पर्यावरणविद हाथ में लेकर आ जाएंगे झंडे ।
अपने ही अधिकारियों और नेताओं से खाने पड़ेंगे उनको डंडे।।