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*हिमाचल_पर_बढ़ता_कर्ज_एक_चुनौ सड़.ती*

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17 नवम्बर 2022- (#हिमाचल_पर_बढ़ता_कर्ज_एक_चुनौती) –

मेरे ब्लॉग का शीर्षक एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक की एक रिपोर्ट से लिया गया है। 12 नवम्बर को हिमाचल विधानसभा के लिए मतदान हो जाने के बाद एक ही चर्चा है कि क्या मतदाताओं ने सरकार बदलने के लिए मतदान किया है या रिवाज बदलने के लिए। यानि कि यदि सरकार बदलती है तो नई सरकार कांग्रेस पार्टी की होगी और यदि रिवाज बदलता है तो निश्चित तौर पर वर्तमान मुख्यमंत्री ठाकुर जय राम मुख्यमंत्री बने रहेंगे। कांग्रेस को पहली चुनौती का सामना करना होगा कि प्रदेश का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। वर्तमान मे वीरभद्र सिंह जी की गैर मौजूदगी मे किसी नये व्यक्ति को प्रदेश की बागडोर सौंपनी होगी। आज कांग्रेस मे मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार है और सब एक ही स्तर के नेता है। ठाकुर कौल सिंह उनमे जरूर वरिष्ठ है। खैर कांग्रेस मे परम्परा है कि चुने हुए विधायक एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर नेता चुनने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष को अधिकृत कर देते है।

सरकार बदले या रिवाज बदले आने वाली नई सरकार को सरकार की कमजोर वित्तीय स्थिति का सामना करना होगा। हिमाचल पर बढ़ता कर्ज नई सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। हिमाचल की कमजोर वित्तीय स्थिति अब वित्तीय संकट मे तब्दील होती दिखाई दे रही है। अखबार छपी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 70,000 करोड़ का कर्ज प्रदेश सरकार पर है। इस रिपोर्ट मे यह भी बताया गया है कि 2021-22 मे 8493 करोड़ और 2022-23 मे नवम्बर तक 4804 करोड़ के कर्ज मे बढ़ौतरी हुई है। खजना खाली होने के बावजूद चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलो ने बड़ी बड़ी घोषणाएं की है। हालात इस कदर खराब है कि वेतन- पैंशन के अतिरिक्त पहले से लिए कर्ज को लौटाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है। हैरानी की बात है कि भाजपा सत्ता मे है और कांग्रेस को भी सत्ता का लम्बा अनुभव है फिर भी यदि दोनों प्रमुख राजनितिक दलों द्वारा की गई घोषणाओं का विवेचनात्मक परिक्षण किया जाए तो यह घोषणाएं हिमाचल की वित्तीय स्थिति से मेल नहीं खाती है।

मेरे विचार मे इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए कर्ज लेने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से उदार वित्तीय मदद की भी आवशयकता होगी। स्मरण रहे अधिक कर्ज लेने पर कैग पहले ही सरकार को आगाह कर चुका है कि 2025-26 मे ऋण व ब्याज चुकाने पर ही सरकार को 6,416 करोड़ खर्च करने होगें, जो सुखद स्थिति नहीं है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमो का घाटा 4074 करोड़ तक पहुंचना भी चिंता की बात है। असल मे जब तक सरकारें अपने आय के स्रोतों मे बढ़ौतरी के साथ- साथ अपनी फिजूल खर्ची बंद नहीं करती तब तक प्रदेश को वित्तीय संकट से उभार पाना अति कठिन है। मै क्षमा याचना के साथ यह कह सकता हूँ कि आज के राजनेताओं को इसकी कोई चिंता नहीं है।

Mohinder Nath Sofat

#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।

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