*लड़कियों की व्यथा !लेखिका: तृप्ता भाटिया*
यह जो लड़कियां हैं न आपकी
यह नाजुक उम्र में ही छोड़ जाती हैं आपके घर, शहर और गांव
यह जो लड़कियां होती हैं उन्हें मोह नही होता जमीन के हिस्सों का, बेमतलब के किस्सों का यह तो बस करती हैं खड़ी दीवारों से प्यार कि टूट के गिर न जायें अगली दफा जब हम आयें वैसा ही मिले मायके का घर संसार।
यह लौटने के फिर बहाने ढूंढती हैं, इनको याद रहते पुराने छपरों के खपरैल, स्लेट वो पेड़ जिस पर झूले डाले होतें हैं कभी, वो आंगन जो उनके ठहाकों से गूंजते थे कभी, वो उंगलियों पर गिन लेती हैं आम, जामुन, पीपल के पेड़,
वो सोचकर महसूस कर लेती हैं उनकी ठंनडक, वो कभी जाती हैं और ढूंढती हैं पुरानी स्मृतियां फिर उदास हो जाती हैं ठूंठ देखकर उसका जो सबसे मीठा आम का पेड़ था किसी वक़्त।
वो करती हैं याद गोटियां खेली हुई, वो अम्मा का दुप्पटे की गांठ में रखा रुपैया, वो पुराने से डब्बे में रखी रंग-विरंगी चूड़ियाँ, वो रुमाल में छुपा कर रखी इमली
वो कान्हा की फ़ोटो के पीछे छुपाये सिक्के।
अब वो मोहताज़ हैं किसी पंचांग की
किसी मुंडन, शादी, धार्मिक समारोह में बुलाने के वास्ते। वो इशारों में बहाने दे देती हैं, भाभी जब पेट से हो तो बुला लेना कुछ दिन ख्याल रखने आ जाऊंगी।
एक बार जब वो छोड़ के जाती हैं तो बिन बुलाये कहाँ आ पाती हैं। कोई मुहर्त देखकर न बुलाया करो वो चाहती हैं कभी ऐसे ही फ़ोन मिलाया करो। वो मरते दम तक कहाँ छोड़ पाती हैं मोह दीवारों और आंगन का।
वो कितनी कम बार आती हैं, कितनी कम बार बुलाई जाती हैं। यह लड़कियां हैं न आपकी नाजुक सी उम्र में छोड़ जाती हैं……घर
तृप्ता भाटिया✍️