*लेख:-आज फैशन और संस्कार में भिड गई* लेखक विनोद शर्मा वत्स*
फैशन।
आज फैशन और संस्कार में भिड गई।
एक दूसरे से ऊँचा दिखाने में बिगड़ गईं।
फैशन ने ओछे पन की परेड सबको दिखाई
संस्कार ने कहाँ हाथ जोड़े तू सबका भाई।
फैशन बोला में आज के युग का लुक्खा हूँ
कही शराब कोकीन कही बार का हुक्का हूँ
तेरी क्या बिसात मेरा मुकाबला करे तू।
मैं तो जिस्म दिखाने को पहले से भुखा हूँ।
सँस्कार हाथ जोड़कर बोला मैं अदब हूँ
मैं मान सम्मान प्यार दिखाने में गज़ब हूँ
कैसे जीते है समाज ने जीना सिखाया हैं।
मैं इंसानियत का जीता जागता महजब हूँ।
फैशन बोला मुझको अदब ना समझा।
मिनटों में इकट्ठा कर लूंगा तू रौब ना जमा।
सारे गैंग एवार्ड सोशल वर्कर मुझसे जिंदा हैं।
संस्कारो का वास्ता देके मुझको ना धमका।
संस्कार बोला मैं तो वैसे भी घुट घुट के जी रहा हूँ
बच्चो युवाओं नर नारी के तानों को पी रहा हूँ।
किसी को नही चाहिये पुराने संस्कार व्यवहार।
इसलिये अपने जख्मो को खुद सी रहा हूँ।
फैशन बोला पहले तो बहुत अकड़ रहा था। फैशन तू है बुरा ये कहके मुझसे झगड़ रहा था।
निकल गई सब हेकड़ी मेरे नये अंदाज़ के सामने।
मैं उड़ान पे था लेकिन तू पीछे से पकड़ रहा था।
सँस्कार सुबक सुबक कर रोने लगा ये सुनकर।
क्या हश्र होगा इनका हवाओ के सपने बुनकर।
है रब इस ओछे फैशन को सही राह दिखला।
ये आगे बड़े तररकी करे अच्छा रास्ता चुनकर।
विनोद शर्मा वत्स