पाठकों के लेख एवं विचार

*पाठकों के लेख : विनोद वत्स , इस बार छब्बीस जनवरी पे सौगात मेट्रो की*

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इस बार छब्बीस जनवरी पे सौगात मेट्रो की।
अब खत्म हुई दूरियां क्या बात मेट्रो की।
आसान हुई मंज़िल और लुत्फ सफर का
ट्रैफिक से मिली निजात क्या बात मेट्रो की।

बेशर्म पड़ोसी पाक ने फिर घुटने टिका दिये।
हमारी फ़ौज ने गलवान से चीनी भगा दिये।
जो कहते है वो करते है, है बात सीधी सी।
ऐसे ही नही लोग कहते क्या बात मोदी जी।

दुनिया मे मेरे देश का परचम लगा है बढ़ने।
कुछ लोग दिमागों को लगे ज्ञान से पड़ने।
ये ज्ञान है उनका क्यों तकरार करे हम।
हम सच नही कह रहे क्या बात भगवे की।

क्यों बात सनातन पे क्यों बहस सनातन पे।
वो जीते अपने ढंग से क्यों दर्द सनातन पे।
उठाते हो योग ध्यान पे बेवजह उंगलियां।
ऐसा ना हो तन जाये सनातन की चोटी जी।

कुछ लोग जोड़ रहे है टूटे भारत को ।
पर टूटा कहा भारत जो जोड़ रहे भारत को
गर जोड़ना भारत बंग पाक फिर से मिलाओ
हम मान जायेगे फिर यात्रा में बात होती जी।
Vinod vats

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