*यादें “धर्मपुर एक हेरीटेज टाउन ” लेखक महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*
*यादें “धर्मपुर एक हेरीटेज टाउन ” लेखक महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*
28 जनवरी 2023- (#यादों_के_झरोखे_से)–
धर्मपुर सोलन मेरी जन्मभूमि है।आज भी वहां जाना या वहां से गुजर जाना बहुत आनंद देता है। कालका शिमला रोड पर स्थित धर्मपुर हमेशा ही महत्वपूर्ण रहा है। कभी क्षयरोग के इलाज के लिए देश भर मे मशहूर था। जब तक स्टेपटोमाइसन का अविष्कार नहीं हुआ था तो यही समझा जाता था कि टीबी के रोगी को आईसोलेट करना जरूरी है और चीड की हवा क्षयरोगी के लिए अच्छी है। ब्रिटिश काल मे भी यहा हार्डिग और किंगएडवर्ड सन्टोरोरिम हुआ करते थे और धर्मपुर का वातावरण क्षयरोग के लिए अनुकूल समझा जाता था।धर्मपुर कसौली, डगशाई और सबाथू के लिए यंही से जाना होता था, इसलिए भी धर्मपुर मशहूर था। इसके बाद धर्मपुर को जीवंत कस्बे की पहचान लकड़ी के बिजनैस ने दिलाई। उस समय जंगल के कटान पर आज की तरह प्रतिबंध नहीं था। धर्मपुर का रेलवे स्टेशन सड़क से जुड़ा था और अधिकांश लकड़ी रेल मार्ग से अन्य प्रान्तो को भेजी जाती थी। इसी कारण प्रदेश के अन्य जिलों से लोग रोजी- रोटी कमाने भी धर्मपुर का रूख करते थे।
समय के साथ एक बड़ा परिवर्तन धर्मपुर मे देखने को मिल रहा है। अब क्षयरोग के अधिकांश रोगियों को सेन्टोरियम मे भर्ती रहने की जरूरत नहीं है। अब नई दवाईयों के आ जाने के बाद क्षयरोग के रोगी का इलाज घर मे ही संभव है। हार्डिग सेन्टोरियम अब हिमाचल सरकार के नियंत्रण मे और किंग एडवर्ड सेन्टोरियम बंद हो गया है और अब वह केन्द्र सरकार ने अधिकृत कर लिया है और सी आर पी का ट्रेनिंग सेंटर चलता है। जंगलो के कटान पर सरकार ने पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है और इसके चलते लकड़ी का कारोबार धर्मपुर से खत्म हो गया है। धर्मपुर बाजार जहां हमेशा रौनक रहती थी अब वीरान लगने लगा है। फोरलेन सड़क बनते समय धर्मपुर बाजार का एक तरफ का हिस्सा एन एच ए आई ने अधिग्रहण कर लिया है। अब बाजार दो हिस्सो मे बंट गया है। शिमला रोड़ से सपाटू रोड़ पर जाने के लिए बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। बीच मे तेज रफ्तार मे चलती गाड़ियों के कारण कभी भी दुर्घटना हो सकती है। सड़क के ऊपर ओवर फुट ब्रिज बनाना जरूरी है। खैर जहां समय के साथ धर्मपुर मे गतिविधियां सुस्त हो गई है वंही धर्मपुर का उप-नगर सुखी-जोहड़ी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र विकसित हो गया है।
सभी शिमला और कसौली जाने वाले पर्यटक यहां भोजन खाना नहीं भूलते है। इस जगह को खाने के लिए ख्याती दिलाने का श्रेय निश्चित तौर पर ज्ञानी ढ़ाबे को जाता है। हालांकि अब तो वहां बहुत से ढ़ाबे और रेस्टोरेंट खुल गए है, लेकिन ज्ञानी ढाबे के मालिक सरदार कुलदीप सिंह ने जो संघर्ष किया है उसका मै और मनमोहन सिंह जैसे मेरे दोस्त गवाह है। शुरुआत उन्होने छोटे टी स्टाल से की थी। रात को घड़ी फैक्ट्री मे ड्यूटी करते और दिन मे टी स्टाल चलाते। हम जाते तो सामने भागीरथ लाल की दुकान से चाय की पत्ती की पुड़िया खरीद कर लाते। फिर हमे चाय पिलाते थे। मेहनत के दम पर आज ज्ञानी दा ढ़ाबा ब्राण्ड है। मेरा एक केस दिल्ली मे जुडिशियल कमीशन मे था। जब केस की बारी आई तो जज साहब ने पूछा कि क्या यह वही धर्मपुर है जहां ज्ञानी दा ढ़ाबा है। मैने सोचा सेन्टोरियम के लिए जाना जाने वाला धर्मपुर अब ज्ञानी के ढ़ाबे के नाम से जाना जा रहा है।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।