*कर्नाटक_मे_भी_हिमाचल_की_डगर_पर_कांग्रेस ::महेंद्रनाथ सोफत*
10 फरवरी 2023- (#कर्नाटक_मे_भी_हिमाचल_की_डगर_पर_कांग्रेस)-
हिमाचल के विधान सभा चुनाव मे कांग्रेस ने लोकलुभावने वायदे कर जीत हासिल की और सत्ता का सुख भोग रही है, लेकिन भारी भरकम वायदे नई सरकार के गले की फांस बन कर रह गए है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय है कि सरकार को दस गारंटियों को पूरा करने मे हाथ- पांव फूल रहे है। हालांकि सार्वजानिक तौर पर तो वायदे पूरे करने की घोषणाएं हो रही है लेकिन निजी बातचीत मे कांग्रेस नेता यह स्वीकार करते है कि इतने भारी-भरकम वायदे न भी करते, भाजपा के विरोध मे उत्पन्न सत्ता विरोधी हवा के चलते ऐसे भी जीत जाते। उधर ऐसा लगता है कि कांग्रेस हाईकमान हिमाचल के अनुभव से भी कुछ सीखने के लिए तैयार नहीं है। कर्नाटक मे इसी वर्ष मई से पहले चुनाव होने जा रहे है। वहां भी कांग्रेस बिजली के उपभोक्तओं को 200 यूनिट मुफ़्त बिजली देने की बात कर रही है। वहां भी हिमाचल की तर्ज पर महिला मतदाताओं और उनके वोट बैंक को लक्षित करते हुए कांग्रेस द्वारा “ना नायकी ” सम्मेलन किए जा रहे है।
बीती 16 जनवरी को कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रस्तावित गृह लक्ष्मी योजना मे महिला मुखियाओं को 2000 रूपए प्रति माह देने का वायदा किया है। अब भाजपा भी इतनी ही राशि निम्न आय वाले परिवारों की गृहिणियों को वित्तीय मदद देने की बात कर रही है। एक तरफ भाजपा मुफ़्त रेवाड़ियां बांटने का विरोध तो करती है लेकिन चुनाव हारने के डर से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की नकल करने के लिए मजबूर है। देश के विद्वान अर्थशास्त्री बार- बार राजनैतिक पार्टियों को लोकलुभावनवाद के बारे मे चेतावनी दे रहे है। वह इस प्रकार के निर्णयों को श्रीलंकाई स्थिति के साथ जोड़कर भी देखते है। जब भी मुफ्तवाद के विरोध मे बात होती है तो मुफ्तवाद के समर्थक नेताओं को मिलने वाले वेतन,भत्ते और सुविधाओं का हवाला दे कर मुफ्तवाद को उचित ठहराते है। शायद अब समय आ गया है देश को बचाने के लिए मुफ्तवाद का विरोध करना होगा और इसके लिए भले नेताओं को अपने वेतन और भत्तों मे भी कटौती कर मिसाल पेश करनी पड़े।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।