
“एकादशी व्रत कैसे रखा जाता है?”

पिछले लेख में हमने एकादशी व्रत से मिलने वाले लाभ के बारे में विस्तार से चर्चा की थी। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज हम एकादशी व्रत की कथा और एकादशी व्रत रखा कैसे जाता है, उसके बारे में चर्चा करेंगे। एकादशी की उत्पत्ति – सत्ययुग में मूर नाम का एक दैत्य हुआ। मूर के पिता का वध भगवान विष्णु ने किया था। जिससे मूर को अत्यन्त दुख हुआ। उसके मन में बदले की भावना जागृत हो गई फलस्वरुप मूर ने घोर तपस्या की, उसकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी ने उसे वर मांगने को कहा तो मूर बोला – देवता, दैत्य, पशु-पक्षी, मुनि, लोकपाल जहां तक आपकी सृष्टि है मुझे न कोई जीत सके न ही कोई मुझे मार सके। मुझे ऐसा वर दो। तथास्तु कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान हो गए। अब मूर दैत्य को अपनी शक्ति का अहंकार हो गया। इसलिए सभी लोकों को जीतकर समस्त लोकों पर उसका एकाधिकार हो गया। जिससे चारों तरफ मूर दैत्य का अत्याचार बढ़ गया। सारे देवता और ऋषि मुनि अत्यन्त दुखी होकर भगवान शंकर के पास गए और कहा- मूर दैत्य के अत्याचार से हमारी रक्षा करो। शंकर भगवान ने सबकी प्रार्थना को स्वीकार किया और मूर दैत्य से युद्ध करने लगे परंतु युद्ध में दैत्य राज विजयी हुए क्योंकि उन्हें ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था। अब जब देवताओं ने देखा कि संकट बढ़ता जा रहा है तो उन्होंने भगवान विष्णु का स्मरण किया- हे नाथ! हमारी रक्षा करो। प्रभु हरि ने अपने प्रिय सुदर्शन को आज्ञा दी कि मूर दैत्य का नाश कर दो।सुदर्शन चक्र मूर के पास गया और उसकी परिक्रमा करके वापस प्रभु के पास आ गया क्योंकि सुदर्शन चक्र ने ब्रह्माजी के वरदान की मर्यादा रखी। अब तो चारों तरफ हाहाकार मच गया। भगवान श्री हरि तो लीलाधर हैं, प्रभु ने वहां अपनी लीला करनी आरंभ की और युद्ध से भाग गए। जब दैत्य राज ने देखा कि भगवान विष्णु भाग रहे हैं तो वह भी गद्दा लेकर प्रभु के पीछे पीछे भागने लगा। प्रभु बद्रिकाआश्रम में गहरी व एकांतिक गुफा में जाकर छिप गए और योग निंद्रा में चले गए। मूर ने गुफा में प्रवेश किया और कहने लगा – कहां हैं विष्णु? उसी समय भगवान के हृदय से एक दिव्य शक्ति कन्या के रूप में प्रकट हुई। वह परम तेजस्वी थी और दिव्य अस्त्र शस्त्रों से युक्त थी। उस कन्या ने क्षणभर में उस मूर राक्षस को मार गिराया और सभी देवता वहां आ गए और उन्होंने पुष्पों की वर्षा की और उस देवी की स्तुति की। स्तुति सुनकर श्री हरि जाग गए और प्रभु ने कहा यह तुम किसकी स्तुति कर रहे हो तो देवताओं ने सारा वृत्तांत सुनाया। प्रभु श्री हरि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – क्योंकि यह कन्या एकादशी तिथि को प्रकट हुई है इसलिए इस कन्या का नाम एकादशी होगा। यह एकादशी अष्ट सिद्धि,नौ निधियों की स्वामिनी होगी। जो भी मनुष्य एकादशी व्रत का पालन करेंगे वह निष्पाप और पुण्य आत्मा होंगे और उन्हें मेरे चरणों की शुद्ध प्रेमाभक्ति प्राप्त होगी इसलिए एकादशी व्रत प्रभु श्री हरि को अत्यंत प्रिय है।
आइए अब हम यह जानते हैं कि एकादशी व्रत कैसे रखा जाता है :-
एकादशी व्रत का पालन हम कई तरह से कर सकते हैं। जिसमें निर्जल व्रत को सर्वोत्तम माना गया है। साधक बिना कुछ खाए पिए सारा दिन प्रभु श्री हरि के चिंतन में लीन रहता है, जिससे साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है। नवसाधकों को निर्जल व्रत करना बहुत मुश्किल लगता है इसलिए केवल जल पीकर या फिर जल के साथ अन्य तरल पदार्थ जैसे दूध और जूस ले सकते हैं। अगर ऐसा करना भी मुश्किल लगे तो साथ में फल भी ग्रहण कर सकते हैं। अगर ऐसे भी हमें कठिनाई हो रही है तो हम फलाहार जैसे आलू और साबूदाना इत्यादि को भी ग्रहण कर सकते हैं। अगर कोई रोगी है और उसे लगता है कि वे ज्यादा भूखा नहीं रह सकता, उससे उसकी तबीयत खराब होने का डर है तो ऐसा व्यक्ति दो बार भी फलाहार ग्रहण कर सकता है। बस व्रत में हमें अनाज ग्रहण नहीं करना होता बाकी हम अपनी सुविधानुसार खा पी सकते हैं। हमें अपनी अपनी क्षमता के अनुसार ही अपने लिए खुद नियम बनाने हैं। शुरुआत में हम ज्यादा कठोर नियमों का पालन न करें ताकि हमें ज्यादा असुविधा का सामना न करना पड़े। आहिस्ता आहिस्ता प्रभु कृपा से जब हमें व्रत रखने की आदत हो जाएगी तब हम अपने लिए कुछ कठोर नियम भी अपना सकते हैं। बस हमें यह ध्यान रखना है कि व्रत वाले दिन हमें ज्यादा खाने पीने पर ध्यान नहीं देना चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे तो हम अपने असली उद्देश्य से भटक जाएंगे। व्रत रखने का असली उद्देश्य खाना खाना नहीं बल्कि प्रभु को खुश करना है तो प्रभु को खुश करने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा हरिनाम करना चाहिए।ज्यादा से ज्यादा सत्संग सुनना चाहिए, मंदिर जाना चाहिए यानि कि इस दिन हमें ज्यादा से ज्यादा प्रभु को याद करना है। अपना ज्यादा से ज्यादा समय प्रभु के साथ व्यतीत करने की कोशिश करनी है। यदि हम इस भाव के साथ एकादशी व्रत का पालन करते हैं तो हमें मन की शांति के साथ-साथ प्रभु श्री हरि के चरणों की शुद्ध प्रेमाभक्ति भी प्राप्त होगी, क्योंकि एकादशी व्रत एक लिफ्ट का काम करता है यानि कि साधारण दिनों की अपेक्षा इस दिन किया जाने वाला जप-तप हमें अनंत गुना फल प्रदान करता है। इस तरह से एकादशी व्रत के अनंत लाभ है और हमें अपनी भक्ति को बढ़ाने के लिए इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए।
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न शस्त्र पर न शास्त्र पर न धन पर न ही किसी युक्ति पर, मेरा जीवन तो आश्रित है, हे प्रभु! केवल और केवल आपकी कृपा शक्ति पर।🙏
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ए बी सी डी की भक्ति में लीन होकर नित्य आनंद पाइए।
हरि हरि बोल 🙏🙏🙏🙏
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