Editorial

*Editorial*:- *कर्नाटक_चुनाव_परिणाम_के_बाद_ममता_ने_बदले_सुर* :*महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*

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17 मई 2023- (#कर्नाटक_चुनाव_परिणाम_के_बाद_ममता_ने_बदले_सुर)-

कर्नाटक मे कांग्रेस की जीत के बाद विपक्ष की राजनीति मे हलचल है। हाशिए पर चल रही कांग्रेस एक बार पुनः विपक्ष की राजनीति के केन्द्र मे लौट रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जिसने यूपीए के अस्तित्व को मानने से इंकार कर दिया था और पिछले तीन-चार साल से कांग्रेस के साथ कोई तालमेल नहीं रख रही थी के रूख मे परिवर्तन आ गया है। अब ममता ने कहा कि जहां कांग्रेस मजबूत है वहां हम कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार है। साथ मे उन्होने एक शर्त भी लगाई है कि जहां अन्य दल मजबूत है वहां कांग्रेस को उनका समर्थन करना होगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की कवायद तेज हो गई लगती है। रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस ने नितीश कुमार को विपक्षी एकता के प्रयास जारी रखने के लिए कहा है। उल्लेखनीय है कि नितीश विपक्षी नेताओं की एक बैठक पटना मे करने जा रहे है। जहां पर विपक्षी एकता के ब्ल्यू प्रिंट को अंतिम रूप दिया जा सकता है। ममता का बदला रूख और केजरीवाल की आदान- प्रदान के आधार पर कांग्रेस के साथ लोकसभा सीटों के बंटवारे की इच्छा विपक्ष की एकता की मुहिम को ताकत देती है। प्रतिष्ठित दैनिक मे छपी खबर के अनुसार पटना बैठक मे खरगे, पवार, ममता, अखिलेश, हेमंत सोरेन, एस के स्टालिन, केजरीवाल, सीताराम येचुरी और डी राजा जैसे नेताओं के भाग लेने की संभावना है। मेरी समझ मे विपक्षी एकता के प्रयासों और कांग्रेस की कर्नाटक की बड़ी जीत के बावजूद लोकसभा चुनाव मे सत्ता पक्ष से मुकाबला आसान नहीं है।

पूर्व मे हुए प्रदेश चुनाव एवं तत्काल लोकसभा चुनाव पर एक नजर डालें तो एक बात स्पष्ट समझ आती है कि जहां स्थानीय राजनीति के चलते प्रदेश की सत्ता तो बदल गई पर कई जगहों पर लोकसभा परिदृश्य मे जनमानस का मत प्रदेश चुनाव मे आए जनादेश के विपरीत रहा। मेरे विचार मे कर्नाटक और हिमाचल की हार के बावजूद केंद्र मे सत्तारूढ भाजपा का मुक़ाबला एक विभाजित कमजोर विपक्ष से है। भाजपा से नाराज़ और विपक्ष एकता के नये प्रवक्ता पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक भाजपा के खिलाफ एक विपक्षी उम्मीदवार खड़ा करने की सलाह दे रहे है, लेकिन यह हर दल की अपनी महत्वाकांक्षा के चलते यदि असम्भव नहीं तो अति कठिन अवश्य है। यदि विपक्षी पार्टियां इसके लिए इस फार्मूले को अमल मे लाने पर सहमती बना लेती है कि विपक्ष का उम्मीदवार उस दल का होगा जिस दल ने 2019 के लोकसभा चुनाव मे उस सीट को जीता होगा या भाजपा के मुकाबले हारते हुए जिस दल का उम्मीदवार नम्बर दो पर रहा होगा तो एक के खिलाफ एक उम्मीदवार के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। खैर अभी तो पटना बैठक मे होने वाली चर्चा तय करेगी कि विपक्ष की एकता के लिए दिल्ली कितनी दूर है।

#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।

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