*Editorial: कुछ सरकारी कानून वर्षो पुराने हैं और गले सड़े हुए हैं , जिन्हें बदलने की जरूरत*
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सरकार की नीतियां क्या होती है किसी को समझ नहीं आता … नीचे चित्रो में दिख रही
यह लाखों रुपए की बेशकीमती देवदार के पेड़ चंबा के कालाटॉप में शायद बरसों पहले सूख गए हैं। लेकिन शायद इन्हें काटकर बेचने की इजाजत है वन विभाग के पास नहीं है। सड़ने से बेहतर है कि इन्हें बेचकर सरकार के खजाने में लाखों रुपए अर्जित किए जाएं परंतु विभाग के हाथ बंधे हुए हैं।
ऐसे गले सड़े कानून का क्या फायदा जिससे सरकार का नुकसान हो ,और सरकार कर्ज में डूबी रहे ।अगर सरकार का फाइनेंसियल मैनेजमेंट किसी फ़ एक्सपोर्ट के पास दिया जाए जिससे प्रदेश के विभागों से हमदर्दी हो सहानुभूति हो वह ऐसे ऐसे गले सड़े कानूनों को दरकिनार करके सरकार कि घाटे के बजट को लाभ के बजट में तब्दील कर सकता है ।परंतु हमारे देश में हर नौकरी हर पोस्ट के लिए जरूरी न्यूनतम योग्यता होती है परंतु मंत्री बनने के लिए कोई योग्यता नहीं होती । देश के वित्त मंत्री, रेल मंत्री हो स्वास्थ्य मंत्री हो या कोई अन्य मंत्री किसी भी सरकार रही हो, कभी भी कहीं भी, प्रोफेशनल मंत्री नहीं बना। सोचिए अगर हमारा स्वास्थ्य मंत्री कोई डॉक्टर है जिसे स्वास्थ्य की बारीकियों का पता होता हमारे देश के स्वास्थ्य सेवाएं कितने उच्च स्तर तक पहुंच सकती हैं । सरकार के संसाधनों के दोहेने और उनके सही उपयोग जो जनहित में हो और उनके सही नीति निर्धारण में कभी भी वह एक्सपर्टीज विशेषज्ञता नहीं लाई जा सकी जिसकी उन विभागों को जरूरत होती है, देश के सभी विभागों में प्रोफेशनलिज्म और सरकारी संसाधनों के सही उपयोग की ओर ध्यान दिया जाना जरूरी है । यह सूखे पेड़ों की कहानी केवल चंपा के कालाटॉप की नहीं है बल्कि हिमाचल के सभी क्षेत्रों में आपको ऐसे ही सूखे हुए पेड़ या हरे पेड़ गिरे हुए मिल जाएगे जो कि शायद विभाग की मजबूरी रही होगी ऐसे ही अन्य पेड़ खड़े-खड़े सड़ जाएंगे पर बीट नहीं पाएंगे सरकार वह एक कोढ़ी का मूल्य के भी नहीं रहते जबकि उन्हें भेज कर करोड़ों का रेवेन्यू कमाया जा सकता है