पाठकों के लेख एवं विचार

*पाठकों के लेख :एक तंज ,लेखक अज्ञात अनजान*

हिमाचल में सभी ही वी आई पी है , मैं झूठ नही कह रहा हूँ देखिए हिमाचल के 85 प्रतिशत कर्मचारी स्टेट कैडर होने के बाद भी घर के आस पास ही नौकरी कर रहे है । जे बी टी तो माना जा सकता है कि घर से पैदल चल कर स्कूल पहुंच जाते है ,पर लेक्चरर और प्रिंसिपल भी घर से पांच से दस किलोमीटर नौकरी कर रहे हों तो क्या वो आम आदमी होगा या होगी । वही हम पत्रकारिता के पुरोधा भी घर के पास ठेकेदारी करते हुए वी आई पी की भांति पार्टी द्वारा दी गयी गाड़ी में शान से कार्यक्रम में जा कर कवर करते है और वहाँ सम्मान भी वी आई पी की भांति ही मिलना तय है । किसी अन्य वी आई पी की हम वी आई पी की शान में गुस्ताखी उसे भारी पड़ सकती है ।
मेरे पड़ोसी अच्छे व्यापारी हैं हर नेता उनकी दुकान में जा कर सलाम ठोकता है एस डी एम साल में एक बार मेले का चंदा लेने के बहाने गिड़गिड़ाता है और पूरे साल दुकान को इंस्पेक्टरी राज से बचाता है ।। अब तो विद्यार्थी भी वी आई पी की श्रेणी में आ गए है अध्यापक न डांट सकता न पीट सकता है । अपने ही गांव का अध्यापक है हमेशा छात्रों को इज़्ज़त ही देता रहेगा क्योंकि अध्यापक भी वी आई पी और छात्र भी वी आई पी । अपनी गाड़ी में तराजू या कॉलर बैंड लगाए घूमता वकील बाबू तो हमेशा से ही वी आई पी रहा है , पुलिस से लेकर शहर के हर बड़े अधिकारी वकील साहिब कह कर पुकारते हैं ,तो साहिब भी वी आई पी ही हुए । पंचायती राज के जनप्रतिनिधियों से लेकर सचिव और चौकीदार से ले कर मनरेगा के कामगार भी अब वी आई पी हो गए है , बच्चों को वजीफे ,मुफ्त इलाज और तो और काम के स्थल पर वी आई पी लोगों के भांति क्रेच की भी व्यवस्था । पटवारी पहले ही हाकिम थे आज भी और डी सी आफिस से लेकर नायाब तहसीलदार के चपड़ासी तक डी सी से कभी लगे हैं आपको ।
यह फेहरिस्त बहुत लंबी है और आप अभी तक एल एम ए को ही वी आई पी समझ बैठे थे । हाँ वो भी वी आई पी है जिसे फेसबुक पर हर कोई कुछ भी बोल देता है और अगली सुबह तो छोड़ो उसी रात उस एल एम ए की खुशामद कर के अपने मन पसंद जगह नौकरी कर लेता है , ठेका ले लेता है ,सड़क पक्की करवा लेता है , हस्पताल खुलवा लेता है । कभी कभी मुझे लगता है कि बिना हेलमेट लगाए साइलेंसर को फाड़ कर मोटर साईकल चलाने वाला भी वी आई पी है , गलती से चलान कट गया तो पूरा शहर सिर पे उठा लेंगे । एल एम ए मुर्दाबाद सरकार हो बर्बाद के नारे यही वी आई पी लगाते है और उन्हें शहर के बाकी सभी वी आई पी का समर्थन मिल जाता है ।

हां इनके इलावा भी मेरे शहर में प्राइवेट स्कूल के कुछ टीचर है जो डरते हुए बच्चों पर मेहनत करते है , मेरे गांव का किसान ,असंगठित मजदूर आदि काफी लोग जल्द वी आई पी दर्जा पाने की आस लगाए बैठे है , उनके सामने ही गांव की महिलाएं संगठित हो कर महिला मंडल से जुड़ते ही वी आई पी महसूस कर रही है ।
लाल बत्ती हटने के बाद वी आई पी भी बढ़ गए है काश सभी को इस वी आई पी स्टेटस का इल्म हो जाता। वी आई पी के कर्तव्यों का बोध हो जाता । काश हर वी आई पी अपने स्टेटस को समझ कर दूसरे के स्टेटस से ईर्ष्या न करता । काश सभी वी आई पी को पेंशन भी वी आई पी सी मिलती और हमारे 60 वर्ष के बुजुर्ग भी अपने को वी आई पी समझते ।
~ *अज्ञात*

 

 

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