*Editorial:ना जाने NHAI किस हादसे के इंतजार में*
*Editorial:ना जाने NHAI किस हादसे के इंतजार में*
ना जाने NHAI किस हादसे के इंतजार में ।
लगभग 3 हफ्ते यह पेड़ यहां पर गिर गया था। कुदरत का कमाल देखिए कि अगर यह पेड़ किसी बस पर गिर जाता तो आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि 20- 25 लोगों का मारा जाना लगभग तय था। ईश्वर ने अपनी कृपा दृष्टि रखी और इस पेड़ को बस पर गिरने से बचा लिया किसी कार पर गिरता तो भी चार लोग मरते हैं बच्चों की स्कूल वैन पर गिरता तो कितने ही बच्चे मर जाते कोई अंदाजा नहीं लगा सकता परंतु ईश्वर ने अपनी कृपा दृष्टि रखी और इस पेड़ को उस समय गिराया जब यहां पर कोई ट्रैफिक नहीं थी ।
परंतु कुदरत का यह फैसला शायद एनएचएआई को मंजूर नहीं वह इस इंतजार में है कि कब यहां पर कोई हादसा हो कोई व्यक्ति गिरकर घायल हो जाए अपनी टांग तुड़वा ले और कब कोई बाइकर एक्सीडेंट की वजह से यहां पर मर जाए ,तब जाकर यह पेड़ उठाया जाएगा। शायद यही जिद्द पकड़े हुए हैं संबंधित विभाग के लोग।
लोगों को कहना है कि बच्चे जाम की वजह से स्कूल देरी से पहुंच रहे हैं कई कई मिनटों तक यहां पर जाम लगा रहता है। विशेष रुप से बाइक पर निकलने वाले लोगों के लिए यह मुसीबत का कारण बना हुआ है सुबह 10 बजे जब ऑफिस का समय होता है पूरी यूनिवर्सिटी सीएसआईआर विवेकानंद ट्रस्ट एम ई एस सेंटर स्कूल अन्य संस्थानों के लोग, विभागों के लोग, जब इधर से गुजरते हैं तो उन्हें जाम का सामना करना पड़ता है और वे अक्सर अपने गंतव्य की ओर लेट हो जाते हैं ।
परंतु इससे मठाधीश अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता वह तो नियमानुसार ही कार्य करते हैं।
हो सकता है उनकी कुछ मजबूरी हो या पैसों से थोड़ी दूरी हो ,परंतु ऐसे अवसर पर नियमों को अधिक सक्रियता से लागू करने की आवश्यकता रहती है ।जो कार्य 10 दिन में होना हो उसे 10 मिनट में भी करवाया जा सकता है, यदि विभाग में इच्छाशक्ति हो।
अगर विभाग यही सोचे कि मैंने फाइल भेज दी है अगला साहब जाने ,तो काम नहीं चलता ।
चित्र में जो आपको पेड़ दिखाई दे रहा है इतना बड़ा है कि किसी बस या ट्रक का चकनाचूर कर सकता है फिर कार बाइक की तो बात छोड़ो ही दीजिए ।उनका तो इसने कचूमर निकाल देना था।
यह केवल मात्र एक ही पेड़ नहीं है ऐसे कई और भी पेड़ इस 2 किलोमीटर के एरिया में है पालमपुर सब्जी मंडी से लेकर वेटरनरी कॉलेज तक के ऐसे वृक्ष हैं जो बिल्कुल गिरने का क्या कारण है जिनकी जड़ें जमीन से बिल्कुल निकल चुकी हैं जो मात्र 22 जड़ों पर टिके हुए हैं और हवा के एक झोंके से कभी भी गिर सकते हैं कुछ पेड़ तो इतने खतरनाक हैं कि अगर वह बस में गिर जाए तो 30 40 लोगों की जान ले सकते हैं हैरानी की बात यह है कि इनमें कुछ सूखे हुए पेड़ भी हैं और कुछ बिल्कुल स्थानीय प्रजाति के जैसे खिड़क पज्ज़ा आदि जो मात्र फ्यूल वुड है के पेड़ है जिनके ना तो मार्केट वैल्यू है और ना ही किसी काम के हैं हां यह जानलेवा जरूर हैं जो कभी भी किसी भी वक्त बस या अन्य वाहनों पर गिरकर कई लोगों की एक साथ जान ले सकते हैं ।
परंतु ना जाने किस मजबूरी में यह पेड़ नहीं काटे जा रहे हैं यदि पर्यावरण विदों की एनजीटी की कोई ऐसी गाइडलाइन है या मजबूरी है तो इन लोगों को भी यह सोचना चाहिए कि हम उन अधिकारियों के हाथ ना बांधे जो इनको काटने के लिए अधिकृत हैं।
पेड़ जरूरी नहीं है इंसानों का जीवन जरूरी है ।यहां पर अगर पांच पेड़ काटे जाते हैं तो इससे 20 फुट पीछे हटकर सरकारी ही जमीन है वहां पर 50 पेड़ लगाए जा सकते हैं ,परंतु हमारे देश में ग्रीन ट्रिब्यूनल तथा पर्यावरणविद बहुत हावी रहते हैं तथा अधिकारियों को कार्य नहीं करने देते ।
इस विषय में मैं पिछले कई वर्षों से लगातार लिखता आ रहा हूं परंतु नक्कारखाने में तूती की कौन सुनता है।
उच्चतम न्यायालय को चाहिए कि वह इस मामले में स्वयं संज्ञान लेकर ऐसी फिजूल की बंदिशों को हटाए और अधिकारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार प्रदान करें।