*भाजपा_के_बढ़ते_कदम_कहीं_कार्यकर्ता_गौण_न_हो_जाए)*
08 सितंबर 2022- (#भाजपा_के_बढ़ते_कदम_कहीं_कार्यकर्ता_गौण_न_हो_जाए)-
आज प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक मे एक लेख पढ़ा जो कि भाजपा के जन्म से शिखर तक करिश्माई सफर को लेकर लिखा गया है। मै लेख की अधिकांश बातों को सही मानता हूँ। मै भाजपा की इस सफलतम यात्रा का या तो लम्बे समय तक सहयात्री रहा हूँ और कुछ समय के लिए चश्मदीद गवाह। लेखक ने ठीक कहा है कि करीब चार दशक पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय प्रभुत्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। मुझे स्मरण है कि 1980 मे भाजपा की स्थापना के समय हिमाचल से लगभग कोई दो या तीन दर्जन नेता और कार्यकर्ता दिल्ली मे उपस्थित थे और मुझे भी उनमे से एक होने का सौभाग्य मिला था। 1984 मे भाजपा ने अपना पहला लोकसभा का चुनाव लड़ा था तब उसे 7.74 प्रतिशत वोट के साथ केवल 2 सीटें प्राप्त हुई थी, जबकि कांग्रेस को 49.1 प्रतिशत वोट के साथ 404 सीटें मिली थी। किसी पार्टी को लोकसभा मे मिलने वाली सर्वाधिक सीटें थी। भाजपा के कार्यकर्ताओं को उस समय हम दो हमारे दो जैसी व्यंग्यात्मक टिप्पणियों का सामना करना पड़ता था। खैर इस कमजोर स्थिति के बावजूद भाजपा कार्यकर्ताओं मे हताशा नहीं थी। भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने खूब लड़ाई लड़ी और परिस्थितियों मे क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। भाजपा की इस सफलता का श्रेय कार्यकर्ताओं को नेताओं से अधिक देना होगा।
आज भाजपा का वोट अनुपात 5 गुणा बढ़ गया है और सीटों मे 150 गुणा बढ़ौतरी हुई है। अभी निकट भविष्य मे राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का कोई विकल्प भी दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन अब भाजपा जो पहले हर काम के लिए कार्यकर्ताओं पर निर्भर रहती थी। उसकी कार्यपद्धति मे परिवर्तन देखने को मिल रहा है। कभी नेताओं के ठहरने से लेकर भोजन तक की व्यवस्था कार्यकर्ता करते थे। अब यह सब आउटसोर्स होने लगा है। पहले पोस्टर से लेकर प्रचार प्रसार सब कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी थी अब इसके लिए पब्लिसिटी कंपनीज को हायर किया जाने लगा है। पहले पार्टी का उम्मीदवार कौन हो इसमे कार्यकर्ताओं की भूमिका रहती थी, लेकिन अब सर्वे कंपनीज की राय को महत्व मिलता है। दिन प्रतिदिन कार्यकर्ताओं पर निर्भरता कम हो रही है। पैसे खर्च कर के सारी गतिविधियां चलाई जा रही है। इससे कार्यकर्ताओं की भूमिका गौण हो रही है और पूछ भी कम हो रही है। कार्यकर्ताओं से बात करने पर उनके मन की पीड़ा सुनाई पड़ती है। मेरे विचार मे यह परिस्थिति किसी संगठन के भविष्य के लिए अच्छी नहीं है।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।