पाठकों के लेखक :लेखक :-रेणू रेणू
💞बचपन मे जब भी पूछता था कोई, कितने भाई बहिन है तुम्हारे , जोडने लगते थे हम सभी ,जल्दी जल्दी,अपनी नन्ही नन्ही उंगलियों पे, उंगलियाँ खत्म हो जाती ,जोड नही ।क्योकि कजिन क्या होता है ,पता ही नही था।माँ ने कहा ये तेरे बडे भाई है ये छोटी बहन,बस । हो गए हम ढेर सारे,गर्मी की छुट्टियाँ,कब आती ,कब बीत जाती ,पता ही नही था।जब भूख लगे ,जिस घर के बाहर खेलते ,उसी मे घुस जाते ,वे अपने ना थे ,पता ही ना था।चाची ,ताई ,मासी,बुआ,ना जाने कितने अपने लोग ,कितने प्यारे रिश्ते,एक ही टोकरी मे सजे अलग अलग फूलों की भाँति ,उतना ही अपना पन ,उतनी ही डाँट,परायापन क्या होता है पता ही ना था।बडे हुए तब सुना ,अपने परायों के किस्से,पर मन ,वो तो रंग चुका था ,,प्यार और अपनेपन के उन रंगो मे ,जो कभी नही छूटता ,बंध चुका था उन रिश्तों की अदृश्य डोरियो मे ,जो कभी नही टूटता ।लगभग तीन चार दशको बाद ,आज,जब जीने चले,फिरसे उन पलों को ,तो इतना सुखद अहसास,आज भी सभी, मेरे जैसे ही ,खडे है उसी मोड पर ,एक दूसरे का इंतजार करते ,उन यादो को मुट्ठियों मे थामे खोलते उडाते से,,रंग-बिरंगी यादो की तितलियाँ,और उन्हे पकडते हम सभी ,उल्लास और आन्नद से भरे हुए ।सच है ,बचपन वापस तो नही लौटता ,पर जिया जा सकता है ,उन यादो को,फिर से एकबार,ये भी सच है,संजोये जा सकता है,फिर से एक बार उन रिश्तों को जो पीछे छूटे से जान पडते है ,पर कभी नही टूटे ,दिल के करीब जो करीब थे।💞