*”यादों_के_झरोखे_से” :लेखक महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*
29 जनवरी 2023- (#यादों_के_झरोखे_से)–
यह किस्सा जहां हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार की महानता को समर्पित है वहीं यह किस्सा जनसंघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता प्रेम सागर पाल के मेहनत और संगठन के प्रति समर्पण को भी समर्पित है। उन दिनों हिमाचल मे जनसंघ का बहुत ही कम आधार था। स्मरण रहे जनसंघ के केवल पांच विधायक हुआ करते थे। हमारे क्षेत्र मे केवल शिमला से दौलत राम चौहान बतौर जनसंघ विधायक के शिमला का प्रतिनिधित्व करते थे। प्रेम सागर पाल जो शायद मूल- रूप से उत्तर प्रदेश से संबंधित थे, हिमाचल मे विशेषकर जिला सोलन और जिला सिरमौर मे जनसंघ के संगठन के विस्तार के लिए कार्य करते थे। मेरे पिताश्री जनसंघ के कट्टर समर्थक और कार्यकर्ता थे तो प्रेम सागर पाल उनको और धर्मपुर के कुछ और जनसंघ समर्थकों को मिलने आते रहते थे। मेरा इसी निमित उनसे परिचय था। पाल जी का डील-डोल ऐसा था कि यदि आप एक बार उनसे मिल लेगें तो आप उन्हे भूल नहीं सकेंगे। वह बहुत पतले और लम्बे व्यक्ति और दूर से पहचाने जाते। उन दिनों उनका केन्द्र सोलन था और वह अधिक समय सोलन संघ कार्यालय मे रहा करते और मै सोलन कालेज का विद्यार्थी और विधार्थी परिषद का कार्यकर्ता था। मेरा भी संघ कार्यालय मे आना जाना रहता था।
1972 के चुनाव प्रबंधन मे भी पाल जी सोलन और सिरमौर मे सक्रिय थे। खैर इन चुनावों के बाद की बात है कि मै और पाल जी सोलन मे पुराने जिलाधीश कार्यालय के पास खड़े थे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ परमार का कफिला प्रेम सागर पाल को मिलने के लिए रुक गया और कार से उतर एक सुरक्षा कर्मचारी ने पाल जी से कहा, मुख्यमंत्री जी बुला रहे है। पाल जी के साथ मै भी गया तो परमार साहब बहुत ही आत्मियता से पाल जी से मिले और हाल- चाल पूछा और फिर हंसते हुए कहने लगे तो खूब घुमाया नारायण सिंह को देहरादून। फिर यह कहते हुए कभी आना – मिलना। मेरे लिए यह सब कुछ बहुत आश्चर्यचकित करने वाला था। उनके जाने के बाद मैने पाल जी से सारी बात समझनी चाही तो उन्होने बताया कि चुनाव मे पार्टी ने मेरी ड्यूटी लगाई थी कि डॉ परमार रेणुका से निर्विरोध चुन कर नहीं आने चाहिए। इसके चलते मैने वहां नारायण सिंह जो कि लोकनिर्माण विभाग मे मेट था उसे मित्र बनाया और उसका जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरवा दिया और फिर मै उसे लेकर देहरादून चला गया ताकि वह पर्चा वापस न ले सके। हम तभी लौट कर वापस आए जब नामांकन वापस लेने की तारीख निकल गई। मेरे पास वह अनुकूल शब्द नहीं है जिनसे मै डॉ परमार की आत्मियता और स्नेह का वर्णन कर पाता, लेकिन वहां जो मैने महसूस किया था वह अविस्मरणीय है।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।