*”लगाव “:- एक इमोशनल कहानी लेखक :विनोद वत्स*
*”लगाव “:- एक इमोशनल कहानी लेखक :विनोद वत्स*
(लगाव )
एक इमोशनल कहानी
जब आपको किसी की आदत पड़ जाये और फिर किसी कारण से वो आपसे बिछुड़ जाये तब पूछो मत मन की क्या व्यथा होती है अभी अक्टूबर दो हजार बाईस की तो बात है अचानक पैर में चोट लगी कि ईलाज के लिये घर जाना पड़ा जब मैं उसे एयरपोर्ट पर छोड़ कर आया तो सच मानो ऐसा लगा किसी ने मेरे शरीर से मेरी रूह छीन ली हो मैं रुंहासा बेमन से एयरपोर्ट के बाहर आया वो ट्रॉली पर बैठी जा रही थी और सिक्योरिटी वाला उसकी ट्रॉली धकेल रहा था क्योंकि चोट की वजह से उससे चला नही जा रहा था लेकिन जैसे तैसे घर पहुँच गई ।देखते देखते 5 महीने होने को है दिल को समझ ही नही आ रहा कि ये राम जी ने कैसा खेल खेला
कुछ लोगो ने तो दीवाली मनाई चलो अलग हुये सब खत्म हो गया ये तो परमात्मा ही जानता है कि सच क्या है। सच अब जीने की इच्छा खत्म हो गई ऐसा नही की मैं मर रहा हूँ लेकिन जी भी नही रहा चल सब वैसे ही रहा है जैसे जीवन चलता है बस दिल का एक कोना खाली हो गया उसकी दीवारें अक्सर अपने साथी को ढूंढती है जो नही है पता नही वो दिल का खाली कोना भरेगा भी या नही।मैने सब राम जी पर छोड़ दिया।
मैने भी आजकल सोचना छोड़ दिया और शरीर को मशीन बना लिया पर दिल है कि मानता नही इंसान कभी याद नही आता उसकी चीज़े, उसकी यादे, उसकी बातें, उसके उपहार, उसकी लड़ाई ,उसका प्यार, सब याद आते है तो वो भी याद आ जाता है भगवान ने ऐसा चक्कर चला रखा है कि धीरे धीरे पुराना सब दिमाग की स्लेट से मिटा देता है बड़ा निर्मोही है वो।लेकिन वो जो करता है ना ठीक ही करता है क्योंकि वो जानता है कि स्लेट पर कब मिटाना है कब नया लिखना है उसके जाने के बाद कुछ नये बेजुबान दोस्त बने भुरू मोती छमिया ये तीनो सच्चे दोस्त इंसान से वफादार भरोसे वाले थे।
पिछले दो दिन से भुरू को सजा मिली हुई है सजा इस बात पर की फिर उसने किसी को काटा है कुछ लोग बताते है कि वो काट लेता है पर पता नही किसकी गलती है काटने वाले कि या जिसको काटा उसकी। उसका दो दिन से खाना, लाड प्यार, पनीर सब बंद। वो नवाब ये जानता है कि उसने गलती की है मुझसे दूर जाकर बैठेगा, दूर से देखेगा, पूंछ हिलाएगा, कभी आँखे बंद करेगा कभी खोलेगा। लेकिन मैने भी अपना मन कठोर कर लिया है की नही मुस्कुराना उसकी तरफ देख के। कल रात जहाँ वो सोता है वहा नही आया ,रात में दो बार जाकर उस जगह पर देखा पर वो वहा नही आया ।मन मे थोड़ी सी टेंशन हो गई ।कहा गया होगा, कुछ खाया होगा या नही, ठंड बहुत है,हवा चल रही है लेकिन वो नही दिखा और मैं भी अपने घर आकर सो गया। सुबह जब मैं पनीर लेकर उसको ढूंढने लगा तो सामने पूंछ हिलाता नवाब मिला मिला मैने झूठा गुस्सा करते हुये उसे नही देखा और उसको पनीर भी आज दूर से फेंका तो गपागप खा कर पूंछ हिलाने लगा लेकिन मेने उसे ऊपरी मन से भगा दिया वो चला तो गया पर दूर तक उसको मेरी आँखें देखती रही सच किसी से लगाव ना हो और लगाव हो तो फिर बिछड़ना न हो। सच जब किसी की आदत लग जाती है तो फिर उससे बिछुड़ने में बड़ी तकलीफ होती है फिर चाहे इंसान हो या बेजुबान हो
तभी सामने से भुरू पूछ हिलाता गया और मैं सब गुस्सा भूल कर उससे प्यार करने लगा
विनोद वत्स की कलम से