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*”जब होना ही है खाक तो किस बात की धाक”*लेखिका तृप्ता भाटिया*

 

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“जब होना ही है खाक तो किस बात की धाक”

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सब क्लेश भूलकर आगे बढ़ने के पक्ष में इसलिए हूँ कि हर आज को मैंने अपनी जिंदगी का आखिरी दिन समझकर जिया है। बहुत पहले मुझे ये सब नहीं लगता था, पहले तो किसी से क्लेश हुए तो बस खत्म। फिर कई बार सामना हुआ उस शह से, जिससे सब डरते हैं”मौत”
सब बदलने लगा, .सोच बदलने लगी और जिंदगी भी। लाइफ में कितना कुछ चलता रहता है….बिमारियाँ….अटैक्स…. एक्सीडेंट्स कौन जानता है कि कौन कितनी लिखवाकर लाया है। कल अगर किसी से कोई मन मुटाव हुआ और ईगो के चलते मैंने उससे किनारा कर भी लिया, और अगले ही दिन मैं इस दुनिया को अलविदा कर जाऊं तो क्या? जो रह जायेगा उसके दिल की टीस कभी खत्म नहीं होगी। इसलिए जितना हो सकता है भूलना है बुरी बातों को भी।
ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ बुरा नहीं लगता या गुस्सा नहीं आता। बहुत बुरा लगता है और गुस्सा भी भयंकर आता है, इतना कि सामने वाले का गला दबा दूँ उस वक्त। पर थोड़ी देर में- चल छोड़ ना, जाने दे ना, माफ कर दे न, ऊपर वाला सब देख लेगा, कल मर जाएंगे तो ये नफरतें कहाँ लेकर जाएंगे…वगैरह खुद को बोल दो और खत्म कर दो।
और ऐसा भी नहीं कि मैंने किसी का दिल न दुखाया हो। इंसान हूँ मुझसे भी गलतियां होती हैं उसके लिये है मेरे पास सॉरी
सॉरी और थैंक्यू बोलने से मेरा ईगो हर्ट नहीं होता। हाँ पर कोई स्वाभिमान पर वार करे तो उसके दिये घावों को भरने में जरा टाइम लगता है पर माफ उसे भी कर दिया उसका किया भगवान भरोसे छोड़कर🙏🏻

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