Thursday, December 7, 2023
पाठकों के लेख एवं विचारएक खूबसूरत रचना:हेमांशु_मिश्रा द्वारा *"मेरे हिस्से का"*

एक खूबसूरत रचना:हेमांशु_मिश्रा द्वारा *”मेरे हिस्से का”*

Must read

1 Tct
Tct chief editor

*मेरे हिस्से का*
*हेमांशु_मिश्रा*

मेरे हिस्से का आसमान
कब कब मुझ से छिन गया
मेरे हिस्से का अहसास
कब कब मुझ से खो गया

यह ऊंची होती इमारतों में
यह लम्बी होती हसरतों में

कुछ कुछ छिनता गया
कुछ कुछ खोता गया ।

मेरे हिस्से की जमीन
कब कब बंटती गयी
मेरे हिस्से का ईमान
कब कब लुट गया

यह नई नवेली ख्वाईशो में
यह धुंधली होती विरासतों में
कुछ कुछ लुटता गया
कुछ कुछ बंटता गया

मेरे हिस्से के अरमान
कब कब दूर हो गए
मेरे हिस्से के फरमान
कब कब गौण हो गए

यह बनते बिगड़ते ख्वाबों में
यह नित नए बदलते हालातों मे

कुछ कुछ बिगड़ता गया
कुछ कुछ बदलता गया

फिर भी

अहसासों के आसमानों में
हसरतों की इमारतों में
विरासतों की ख्वाइशों में
हसरतों के अरमानों में
हालातों के ख्वाबों में

कुछ कुछ मिलता गया
कुछ कुछ पाता गया

मेरे हिस्से की जिंदगी में
कुछ कुछ गुनगुनाता गया
कुछ कुछ गुनगुनाता गया

Author

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article