पाठकों के लेख एवं विचार

*पाठकों के लेख:- यह सोच कब बदलेगी:- संजीव थापर*

Bksood chief editor tct

यह सोच कब बदलेगी:-
अभी सुबह की भी सुबह हुई है अर्थात प्रातः के 4 बजे हैं और मैं अपने बिस्तर में जगा और आंखे बंद किये लेटा हुआ आने वाले दिन की सुगबुगाहटें और आहटें सुन रहा हूँ । मन में कई विचार घुमक्कड़ बादलों की तरह घूम फिर रहे हैं , सबका ताना बाना अलग है । अपने प्रदेश में आने वाले चुनाव , “आप” की कदमताल , सरकारी कार्यरत और सेवानिवृत कर्मचारियों की खजूर के पेड़ पर लटकी आशाएँ , सरकार की असमंजस दिखलाती घुड़की और बेसिर पैर की भाग दौड़ के साथ साथ बंगाल में दो दिन पहले हुआ नरसंहार सभी तो एक पल में आंखों के सामने से निकल गए हैं । इनके साथ साथ रूस यूक्रेन के युद्ध से आती दिल को छेदती बच्चों , बुज़ुर्गों और महिलाओं की आंतर्नाद भी सुनाई दे रही है । जिहाद , लव जिहाद , गज़वा – ऐ – हिन्द और हिजाब जैसी शब्दाबली नें तो सर घुमा कर रख दिया है । मैं अभी ये सब कुछ सोच सोच कर अपना ब्लडप्रैशर बढ़ा ही रहा था कि अचानक व्हाट्सएप्प पर किसी ने पंजाब पर “आप” की जीत की प्रसन्नता में बिजली के बिल माफ करने से सम्बंधित पोस्ट भेज दी है । भेजने वाले का नाम पढ़ कर मैं थोड़ा सा सकते में आ गया हूँ और माथे पे विषाद की रेखाएं उभर आई हैं । भेजने वाले पति पत्नी सरकारी नौकरी में ऊंचे पदों पर विराजमान हैं और लगभग डेढ़ लाख रुपये प्रति महीना तनख्वाह पा रहे हैं और अच्छी खासी प्रॉपर्टी के मालिक हैं अर्थात गरीबी की रेखा से लुप्तप्रायः हैं । अब प्रश्न यह है कि क्या इस तरह के परिवार बिजली का बिल देने में असमर्थ हैं ? क्या इस तरह के लोग ” मुफ्त की सुविधा ” देख कर अपने “मत” का प्रयोग करते हैं ? यह सब देख सुन कर दोस्तो एक विचार मन में आया है कि क्या यदि हमारे पड़ोसी मुल्कों में से कोई हमें कह दे कि ” देश की सत्ता की चाबी मुझे दे दो , मैं आपके लिये सब कुछ बिजली , पानी , राशन , स्वस्थ्य सुविधाएं और ना जाने क्या क्या मुफ्त कर दूंगा ” । तो मान्यवर मुझे पूरा यकीं है कि ऐसी परिस्थिति में भी आप अपने 20 से 30 प्रतिशत मत उसे दे दोगे और स्वयं घर बैठ कर ” work from home ” करोगे । यह हंसने का विषय नहीं गम्भीर हो कर सोचने का विषय है । हमारी मानसिकता कहाँ जा रही है । हमारी सोच के आगे राष्ट्र गौण हो गया है , हमारी सोच और चरित्र ने चरित्रहीन की दहलीज पर ला कर खड़ा कर दिया है और हमारे समाज का बौद्धिक तबका सब चिंताओं से दूर अपनी वैचारिक दुनिया में लीन है ।
संजीव थापर
बन्दला , पालमपुर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button