*कांग्रेस_के_एक_और_कार्यकारी_अध्यक्ष_ने_पार्टी_से_दिया_त्यागपत्र_बने_भगवाधारी*
29 सितंबर 2022- (#कांग्रेस_के_एक_और_कार्यकारी_अध्यक्ष_ने_पार्टी_से_दिया_त्यागपत्र_बने_भगवाधारी)-
जब हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की कमान मंडी सांसद प्रतिभा सिंह को सौंपी गई तो उस समय प्रदेश की कार्यकारणी का भी विस्तार किया गया। दर्जनों नये पदाधिकारी बनाए गए। चार कद्दावर नेताओं को प्रदेश का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। कांग्रेस के बड़ी संख्या मे पदाधिकारी बनाने के पीछे रणनीति थी कि ऐसा करके शायद यह लोग पार्टी के प्रति वफादार बने रहेंगे लेकिन यह रणनीति कारगर सिद्ध नहीं हुई। चार कार्यकारी अध्यक्षों मे से दो ने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है। पहले पवन काजल कांग्रेस को अलविदा कर गए थे, अब एक और कार्यकारी अध्यक्ष कांग्रेस के कद्दावर नेता, रणनीतिकार, पूर्व मंत्री और कभी कांग्रेस के बड़े नेता रहे देस राज महाजन के सपुत्र हर्ष महाजन भी कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए पार्टी को छोड़कर कर भाजपा मे शामिल हो गए है। उनके कांग्रेस को छोड़कर भाजपा मे चले जाने के असली कारण विवेचना का विषय है।
महाजन एन .एस . यू .आई से लेकर युवा कांग्रेस मे सक्रिय रहे है। वह युवा कांग्रेस के लगभग दस वर्ष तक अध्यक्ष रहे है। हालांकि मेरा उनसे व्यक्तिगत परिचय नहीं है लेकिन उनकी तेजतर्रार नेता की छवि से मैं भलीभांति परिचित हूँ। वह तीन बार विधायक रहे और वीरभद्र सिंह के मंत्रीमंडल मे मंत्री भी बने। जब विधायक नहीं थे तो उनको प्रदेश के सबसे बड़े को-ऑपरेटिव बैंक का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। कुल मिला कर वह और उनका परिवार कांग्रेस सरकारों का लाभार्थी रहा है। कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थामने का निर्णय उनका अपना है। किसी को भी उनके व्यक्तिगत निर्णय का विरोध करने का अधिकार नहीं है। वह कह सकते है कि उन्हे लोकतंत्र मे यह अधिकार संविधान ने दिया है। वह किसी सदन के निर्वाचित सदस्य भी नहीं है, इसलिए वह दलबदल कानून की परिधि से भी बाहर है।
एक प्रश्न जरूर है कि कांग्रेस आज कल अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। क्या ऐसे वक्त मे उसके कार्यकर्ताओं, नेताओं और लाभार्थीयों को उसे छोड़कर चले जाना चाहिए या जिस पार्टी या संस्था ने अपने अच्छे दिनों मे इन नेताओं को सत्तासुख देते हुए इनका लालन – पालन किया है, उसके लिए संघर्ष करना चाहिए ? आज हर्ष महाजन ने पार्टी छोड़कर जाते हुए कांग्रेस को दिशाहीन और नेतृत्व विहिन पार्टी बताया है। उन्होने केन्द्र की कांग्रेस और हिमाचल की कांग्रेस को मां – बेटे की पार्टी कहते हुए नकार दिया है। मेरे विचार मे ऐसे नेताओं का व्यवहार नैतिकता की कसौटी पर कदाचित खरा नहीं उतरता है। इस मामले मे भाजपा के कार्यकर्ता और नेता बधाई के पात्र है। जब भाजपा दो सांसदो की पार्टी बन कर रह गई थी तो उन्होने पार्टी को छोड़ा नही अपितु मिलकर संघर्ष किया और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी मे परिवर्तित कर दिखाया।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।लेखक मोहिंदर नाथ सोफ़त